सुबह-सुबह रमुजिया की झोपड़ी पर नगर निगम के कर्मचारियों ने धावा बोल दिया | दलील थी कि देश के प्रधानमंत्री शहर में दौरे पर आ रहे हैं और उनका काफ़िला इसी मुख्य सड़क से होकर गुजरेगा | वे अगर ऐसी गंदी झोपड पट्टी को देखेंगे तो उन्हें बुरा नहीं लगेगा | कुछ दिन के लिए तो यहाँ से किसी दूसरी जगह पर तुमको जाना ही होगा |
रमुजिया दोनों हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाया – ‘साब-साब… मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं और ऊपर से ये पौष की ठण्ड… साब! हम मर जायेंगे |’
तभी एक कर्मचारी की नजर टाट में सिकुड़ते-ठिठुरते दो छोटे-छोटे बच्चों पर पड़ गयी | गरीबी का हृदयविदारक मंजर देख, उसके हृदय में दयाभाव जाग गया | अपने साथियों से बोला – ‘क्यों न बड़े-बड़े बैनर-पोस्टर लगाकर झोपड़ियाँ छुपा दी जायें | इस हाड़ गलाने वाली ठंड में बेचारों का घर क्यों उजाड़ें |’
माहौल देख, उसके अन्य साथियों ने भी उसकी बात का समर्थन किया | और देखते ही देखते बडे-बडे बैनरों से सड़क किनारे की सभी झोपड़ पट्टी छुपा दी गईं |
#मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
परिचय : मुकेश कुमार ऋषि वर्मा का जन्म-५ अगस्त १९९३ को हुआ हैl आपकी शिक्षा-एम.ए. हैl आपका निवास उत्तर प्रदेश के गाँव रिहावली (डाक तारौली गुर्जर-फतेहाबाद)में हैl प्रकाशन में `आजादी को खोना ना` और `संघर्ष पथ`(काव्य संग्रह) हैंl लेखन,अभिनय, पत्रकारिता तथा चित्रकारी में आपकी बहुत रूचि हैl आप सदस्य और पदाधिकारी के रूप में मीडिया सहित कई महासंघ और दल तथा साहित्य की स्थानीय अकादमी से भी जुड़े हुए हैं तो मुंबई में फिल्मस एण्ड टेलीविजन संस्थान में साझेदार भी हैंl ऐसे ही ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय का संचालन भी करते हैंl आपकी आजीविका का साधन कृषि और अन्य हैl