नेता पुत्र-पुत्रियों की व्यथा

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hemendra

       राजनीति की डगर बहुत कठिन मानी जाती है लेकिन इस पर चलने वालों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। भागदौड़ में राजनेताओं के पुत्र पुत्रियां भी पीछे नहीं है, अच्छी खासी तादात में इनका दखल राजनीति में बढ़ता ही जा रहा है । बावजूद  यहां मामला कुछ उल्टा ही पड़ा दिखता है। जहां अन्य क्षेत्रों में वारिसों को अपने परवरिश के आधार पर खानदानी पेशा अपनाने पर कोई नानूकर नहीं होती। जिस पर हर कोई फक्र की बात कहकर हौसला अफजाई करते है। करना भी जरूरी है क्योंकि पंरपंरागत पेशे को बचाए रखना आज की जरूरत है। गौरतलब रहे व्यवसाय व राजनैतिक सेवाओं में अंतर तो है परन्तु मंशा एक ही देश की उन्नति, विकास और जनकल्याण। बतौर व्यापार में योग्यता और कार्य के मायने अनुभव के सामने बदल जाते है। वहां राजनीतिक क्षेत्र में नेता पुत्र पुत्रियों की दखल अंदाजी पर परिवारवाद का रोना रोकर तथाकथितों के सीने में सांप क्यों लोटने लगते है। ये कहते हुए कि अब राजनीति का अनर्थ हो जाएगा । यह राजनीतिक बरसाती वंश राजनीति को तहस-नहश कर देगा। उनकी यह बात तब अच्छी लगती है जब आसमान से खानदानी बरसात हो या सियासत, विरासत बनने लगे तब।

       हां! ऐसा हो तो राजनीतिक तिलक पर जरूर हांहांकार मचाना चाहिए क्योंकि राजनीति किसी की बपौती नहीं है जो वसीयत में लिख दी की मेरे बाद मेरी संतान राजपाट का सुल्तान बनेगी । यह तो लोकतंत्र है यहां जो लोगों की सच्चे मन से सेवा करेगा और पार्टी के हर काम में कंधे से कंधा मिलाकर कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा रहेंगा । ऐसे  नेता पुत्र पुत्र राजनीतिक उत्तराधिकारी कहलाने के सच्चे हकदार होगें। इसलिए राजनीति में जो अर्पण समर्पण और तर्पण की भावना से काम करेगा वही जनता का असली नुमाइंदा कहलाएंगा। लिहाजा जुड़े हुए राजनेताओं के पुत्र पुत्रियों की चिंता और व्यथा जायज है कि हम आज राजनीतिक के मैदान में एक निष्ठावान और कर्म योगी कार्यकर्ता की भांति अपनी भूमिका निभाते आ रहे हैं। फिर क्यों परिवारवाद की बेदी पर हमें चढाकर कहां जाता है कि तुम नेता पुत्र पुत्री ने हमारा हक छीना है। मालूम है राजनीति में परोसी हुई थाली नहीं मिलती, कमानी पड़ती है चाहे वह कोई भी हो सबका तरीका जुदा होता है। आखिर ! हमसे ऐसे अनगिनत जवाब-तलब किए जाते रहते।

         अलबत्ता, अपनी प्रतिभा से कलेक्टर का बेटा कलेक्टर, डॉक्टर की बेटी डॉक्टर, उद्योगपति का बेटा उद्योगपति और हीरो की बेटी हीरोइन बन सकती है तो ऐसी ही योग्यतावानों से लोकशाही क्यों अछूती रहे। बहरहाल, खुशखबर है कि अब होनहार और ऊर्जावान लोग राजनीति में कदम रख रहे हैं । उनमें अगर नेता पुत्र पुत्रियों की अगवानी बढ़ती है तो किस बात का गुरेज। इस पर हमें गर्व होना चाहिए कि दूसरे क्षेत्र में भविष्य संवारने की बजाय राजनीति को अपना रहे है। सरोकार हमें बड़े मन से इनका सत्कार करना चाहिए। यदि ये दूसरे क्षेत्र में काम करते तो वह कहीं ना कहीं ऊंचे मुकाम को हासिल किए होते। ऐसे मौके बार-बार नहीं दिखाई पड़ते जहां संतान अपने माता पिता के पद चिन्हों पर भोग विलासता से विभूषित शानो-शौकत की जिंदगी को त्याग कर राजनीति की कांटो भरी राहों में चलते है खासकर पुत्रियां । वह भी तब, जब देश का नौजवान राजनीति से तौबा करने की बात करता है।

        यथेष्ठ, आम कार्यकर्ताओं के तौर पर काम करने वाले नेता पुत्र पुत्रियों की उस व्यथा से पार पाना होगा कि राजनीति में इनका आगमन केवल वंशजों की वजह  से होता है नाकि अपनी मेहनत और योग्यता के बल पर। इस मिथक को तोड़ना ही राजनीति के लिए लाभदायक होगा। याने वंशवाद नहीं अपितु काबिलियत नेतृत्व का मूलाधार बनें। बेहतर, हमारे देश में अनेकों ऐसे उदाहरण है जहां इन युवाओं ने लोकतंत्र और देश का सिर गर्व से ऊंचा किया है । इसलिए योग्यों को दुलार और अयोग्यों को धुत्कार ही वक्त की नजाकत है। स्तुत्य स्वच्छंदता, जन कल्याण और विकास की नई इबारत राजनीति के माध्यम से देश का अधिष्ठान करेगी।

#हेमेन्द्र क्षीरसागर

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