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लूट के ले गया वो ही शख्स मेरा कारवाँ।
शख्स वो जो कभी, रहा था मेरा हमनवाँ।
चुप रहने की मुझे तालीम अब देता है वो
शख्स वो जो कभी, रहा था मेरा हमजुबाँ।
नवाजिशे,भूलने की इनायत कर रहा है अब
शख्स वो जो कभी ,रहा था मेरा मेहरबाँ।
अपने हाथों खुद चमन जला के चल दिया
शख्स वो जो कभी, रहा था मेरा बागबाँ।
समझ से बाहर हो गई अब उसकी बातें
शख्स वो जो कभी,रहा था मेरी जुबाँ।
#सुरिंदर कौर
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