जब एक बच्चा रंग और कागज पहली बार पकड़ता है और कोई चित्र
उकेरता है तब पहले पहल वो एक झोपड़ी ,नदी ,पहाड़ ,पेड़ ,चिड़िया बनाता है ।इसका मतलब है यह उसके और हमारे जन्म के साथी हैं।
कितना सुंदर और प्यारा लगता है उसका बनाना।
इन सभी से हम अपने अवचेतन से जुड़े होते हैं कोई भी अछूता नहीं रह जाता वो भी जो खुद को मरा हुआ मान चुका हो या जो इन सब बातों को बचकानी कहता हो।
इन्ही में से एक बहुत सुंदर और वाँछनीय वस्तु है चाँद..
चाँद और उसकी कहानियां…कितनी तो सुनी ,ना जाने कितनी बुनी, कितनी उधेड उधेड कर फिर से बुनी ।
कितनी मनमोहक ,सजीली कहानियां होती थी चाँद की ।हज़ारों ,लाखों लोगों खासकर स्त्रियों की आँखों का तारा चाँद।
उनकी रोटी जैसा चाँद…
उनके प्यार जैसा चाँद…
उनके उंगली के छल्लों जैसा चाँद
उनके दुपट्टे की सफेद झिलमिल जैसा चाँद
उनके सपनों का चाँद
उनकी तमन्नाओ का चाँद
उनकी ख्वाहिशें पूरी करने वाला चाँद..
उनके करवाचौथ पर उनका निर्जला साथी चाँद..
बारात में आता सजीले दूल्हे जैसा चाँद
ना जाने कितना प्रिय ,और कितने कितनों का प्रिय चाँद
चाँद और उससे बंधे रिश्ते भी कम नहीं ।हमारी नज़र बदली और चाँद का रूप बदल जाता है ।एक समय वो प्रिय है तो दूसरे घर मे किसी बच्चे का दूध मलाई खिलाने वाला मामा।
किसी का चाँद सा बेटा है तो किसी का भाई।
मुक्तिबोध की कविता का जो चाँद है उसका तो मुँह टेढ़ा है….यह भी मानने की नहीं समझने की बात है ।
बुढ़िया सूत कातती है ये भी सुना है कितनी मीठी बात है ना बचपन की। बचपन जैसी ।
बचपन तो गुजर जाता है पर चाँद टिका रहता है।कितना टिकाऊ है ना इतना टिकाऊ तो इंसान भी नहीं उसका भरोसा भी नहीं।
आज शरद की पूर्णिमा है कहते हैं अमृत बरसता है चाँद से ,काली रात की कालिमा दूर करता है यही अमृत है।
दूर है पर सबसे नजदीक ,यही अमृत है।
कोई वादा नहीं करता पर साथ निभाता है यही अमृत है।
गलतियों पर गले लगाता है डाँटता नहीं यही अमृत है।
विष जैसे जीवन का घूंट पीने की ताकत देता है यही अमृत है।
चाँद रोज नही दिखता लेकिन होता तो है उसका यही होना ही तसल्ली है।
जब दो लोग साथ रहते हैं तब एक दिन ऐसा आता है कि वो एक दूसरे के बारे में सब जान जाते हैं फिर वो साथ रहते हुए भी साथ रहना बन्द कर देते हैं ये अकेलेपन की ओर बढ़ता पहला कदम है।
यही कारण हो शायद की पंद्रह दिन रहता फिर अगले पंद्रह दिनों के लिये गायब ।हो सकता है वो पूरा जाना , जाना नही चाहता हो।किसी के साथ रहने का मज़ा तभी है जब जानने के लिये थोड़ा थोड़ा बचा रह जाये।पूरा जाना जाए तो बिछड़ने का समय आ जाता है। जब हम चाँद को खामोशी से जाने देते है तब औरों को क्यों नहीं सभी जानते है इसका उत्तर की चाँद वापस आता है जाकर ।
वापसी मौसम ,चाँद ,बारिश के अलावा और किसी की संभव नही है क्या?
बस ऐसा ही कुछ चाँद के साथ भी तो है उसके साथ बचपन से लेकर आखरी सफर तक ना जाने कितने पड़ाव पार कर हम जिंदगी का सफर पूरा करते हैं ।
वो जिंदगी जो हम जी नहीं पाते …
फिर भी कोई एक पल तो ऐसा सौभाग्य से मिल ही जाता है जब हम कह सकते हैं की मेरे आँचल में उस रात चाँद था।
अब चाँद तो रात का ही है।
#रश्मि मालवीय
परिचय: रश्मि मालवीय
इंदौर(मध्यप्रदेश)
समाज शास्त्र में परास्नातक
लाइब्रेरी साइंस में स्नातक
शिक्षा में स्नातक
पिछले 13 वर्षों से पुस्कालयध्यक्ष के पद पर कार्यरत व हिंदी साहित्य से लगाव है |
कई पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में कविता प्रकाशित होती है|