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वो झिलमिलाती ,इठलाती, महकती
हिंडोले झूलती,नन्दनवन सी,चमकते तारे सी,
टिमटिमाते हवाईजहाज सी
चंचल मीन सी वो दूरबीन सी
शेर की दहाड़ सी, राजकुमारी के ताज सी
मलय समीर सी,रांझा के हीर सी
सपनों की मिठास सी,मयूर,कोकिल,कीर सी
*वो ख्वाहिशें………….
आज जाने कहाँ खो गई
जिंदगी की अधरझूल में
हिचकोले खाती थककर चूर हो गई
जीवन के बीहड़ वन में भटकते
काँटों में अटकते जख्मी हो गई
बेजुबान सी, उदास सी,दुबके सियार सी
हिमपात की मार सी,तरकश के तीर सी
कटु तिक्त स्वाद सी,सीता की पीर सी
बनकर कण्ठहार गले पड़ गयी
वो ख्वाहिशें…………….
मरी नहीं बनी नहीं
स्मृति की राख में दफन हो गयी
दबी हुई छुपी हुई
अनाम बनकर आज भी
ताप दे रही कहीं
भाप दे रही कहीं
वही वाष्प बूँद बन
आँख में यूँ सज गयी
वो ख्वाहिशें………
#वन्दना शर्मा
अजमेर(राजस्थान)
मेरा नाम वन्दना शर्मा है मैं अजमेर से हूँ मेरा जन्म स्थान गंडाला अलवर है मेरी शिक्षा हिंदी में स्नातकोत्तर बी एड है मेरे आदर्श मेरे गुरु और माता पिता हैंलेखन और पठन पाठन में मेरी रुचि है नौकरी के लिए प्रयास रत हूँ। मेरी रचनाएँ कई पोर्टल पर प्रकाशित होती हैं मैं कई काव्य समूहों में सक्रिय हूँ । अभी मैं मातृभाषा पोर्टल से जुड़ना चाहती हूँ पोर्टल के नियमों के प्रति प्रतिबद्धता मेरी प्रतिज्ञा है वन्दन
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