उलझनों के झुनझुने में अटकी,
किसी चौराहे पर..
मेरे ही खिलाफ चौरंगी सी खड़ी,
यह औढर जिंदगी।
क्या पता किस ओर करवट ले जाए, किस ओर नहीं,
या फिर बढ़ चले सन्नाटे को चीरती हुई मृग मरीचिका..
लिए हुए,बेमतलब के ख्वाब दिखाते हुए,बेपता है यह,
देखा है कि,इसने जो भी चेहरे अक्सर चूमे हैं उन्हीं के।
सूर्य की प्रचण्ड रोशनी में, मकड़जाल में जकड़ी रही,
अंत में आखरी साँस पर जमी आँखें जैसे रह गई..
हो सकता है यह मेरी निराशा का अथाह बयान हो,
मगर जैसा भी है,है जरुर और यही तो सच है सभी का।
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।
बहुत सुंदर बधाई