पूरी घाटी चमक रही थी चाँद सितारे झंडो से।
कश्मीर में हवा चली थी अफजल के ही नारों से।
सेना ने इस बार तमाचा ही जकड़ दिया।
और घर घर जाके अफजल को ही मार दिया।।
अरे निकम्मो कुछ तो शर्म करो।
अपने भीतर झाको कुछ तो हरम करो।
तुमने बेचा अपने ही माँ की छाती को।
अब तो जाके चुल्लू भर पानी मे डूब मरो।
यह देश प्रेम नही इतना सस्ता है।
वीरों का प्राण इसी में बस्ता है।
तुम अफजल के हमराही क्या जानो।
मरने को यहां एक एक वीर तरसता है।
वो फूलों का गुलदस्ता कब का घाटी में मुरझा गया होगा।
चमकता सितारा कब का टूट बिखर गया होगा।
वो मरना फिर से चाहता था अपने देश पर।
लेकिन आस्तीन के सापों को देखा तो फिर सो गया होगा।
मेरा भी मन करता है मैं भी प्रेम कथा का चारण गाऊ।
मैं भी आंखों के झीलों में डूब समंदर हो जाऊं।
‘शहीदों के लासो से निकलता जो आक्रोश मुझे सुनाई देता हैं,
मैं यशगान उन्ही का गाता हु जो मुझे दिखाई देता है।।।।
हिम में खड़े भारत के सिंह जवान हैं,
वो एक एक सैनिक सवा शेर नौजवान हैं,
जिस दिन दौड़ेगा वो माँ भारती का पुत्र,
उस दिन फिर निशाना चीन और पाकिस्तान हैं।
# ️दिप्तेश तिवारी
परिचय
नाम:-दिप्तेश तिवारी
पिता :-श्री मिथिला प्रसाद तिवारी(पुलिस ऑफिसर)
माता:-श्रीमती कमला तिवारी (गृहणी)
शिक्षा दीक्षा:-अध्यनरत्न 12बी ,स्कूल:-मॉडल हायर सेकेंडरी स्कूल रीवा
परमानेंट निवास:-सतना (म.प्र)
जन्म स्थल:-अरगट
प्रकाशित रचनाए:-देश बनाएं,मैं पायल घुँगुरु की रस तान,हैवानियत,यारी,सहमी सी बिटिया,दोस्त,भारत की पहचान आदि।
बहुत ही बेहतरीन प्रयास है, अनुज दिप्तेश जी वीर रस से परिपूर्ण ओजभाव से सराबोर शानदार रचना के लिए हृदय तल से बधाई एवं शुभकामनाएँ|
डॉ० राहुल शुक्ल ‘साहिल’
इलाहाबाद उ० प्र०