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मेरा शहर मेरा प्रदेश अपनी एक अलग ही अनूठी पहचान रखता है । मिलनसारिता , त्योहार की रंगीनियां ,खान पान की विविधता , चहल पहल से आबाद ये शहर वाकई ज़िंदादिली को परिभाषित करता है । जो यहाँ आता है वो यही का होकर रह जाता है । पर इस खूबसूरत प्रदेश को किसकी नज़र लग गयी , जो आजकल अमूमन रोज ही अखबारों में बलात्कार , जबरजस्ती , हत्या , दैहिक शोषण जैसी खबरें आती रहती हैं । समाज की स्थिति क्या थी और अब क्या होती जा रही है ये एक विचारणीय प्रश्न हमारे सामने है । क्या इंसानियत , दयाभाव वात्सल्य ये भावनाये अब केवल शब्द मात्र ही रह गए हैं ?? क्या इंसान की सोचने परखने की शक्ति जानवरों से भी कम होती जा रही है? आज हम जितनी तेजी से आधुनिकता की अंधी दौड़ में शामिल होते जा रहे हैं उतनी तेजी से संस्कारों के पतन में भी शामिल हो रहे हैं ।
यदि हम स्मार्ट वर्ल्ड , स्मार्ट सिटी की बात करते हैं तो केवल आधुनिक संसाधन, तकनीकीकरण या औधोगिकीकरण ही महत्वपूर्ण नही होता , शहर के नागरिकों की सोच और जागरूकता भी महत्वपूर्ण होती है ।क्या आज बच्चों के हाथ मे उद्ददण्डता से खेल रही ये मोबाइल इनटरनेट रूपी आधुनिक संस्कृति कही न कही घातक ही साबित होती नजर आ रही है ।एक बटन दबाने से हिंसा से भरपूर खेल , नग्नता , खुलापन , सब सामने आ जाता है । मासूम बच्चे आक्रामक होते जा रहे हैं , किशोर विकृत मानसिकता से ग्रस्त होकर अनैतिक अपराध करते जा रहे हैं । नशीली दवाओं का सेवन इस मानसिक विक्षिप्तता को बढ़ावा दे रहा है , इसलिए बेटियां न घर मे सुरक्षित है ना बाहर । मॉल जैसी सुरक्षित जगह जहाँ कोने कोने में कैमरे लगे हैं वहाँ एक मासूम बच्ची के साथ अशोभनीय हरकत कर जाना हैरान कर देता है । भारत को संस्कृतिऔर संस्कारों का देश माना जाता है परंतु आज के परिदृश्य को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि हम विशाल सनातन धर्म की सत्ता का अनुकरण कर रहें हैं ?
हमारी संस्कृति में सदा ही नारी को उच्च स्थान दिया है कुल की मान मर्यादा सब नारी को केंद्र मानकर ही बताया गया , क्योंकि ईश्वर की सबसे खूबसूरत नियामत नारी है । और कन्या पूजन को महत्व देते हुए अबोध मासूम कन्याओ को देवी का द्योतक माना गया पर आज ये मासूमियत किस खिलवाड़ का शिकार हो रही है ? छोटी छोटी अबोध बालिकाओ के साथ बलात्कार या दैहिक शोषण की घटनाओं से एक अनजाना , भयानक भय हावी हो गया हैं । जिन कन्याओ का अभी विकास भी नही हो पाया उनके साथ ये क्रूरता । मेरा शहर ऐसा तो न था ।
आज हमने सम्पूर्ण विश्व मे अपनी अलग ही एक पहचान बनाई है। ये पहचान कला संस्कृति के क्षेत्र में ही नही वरन शांति और सद्भावना8 के क्षेत्र में भी बनी है । आज हम स्वच्छता में स्वयं को नम्बर वन घोषित कर चुके हैं । स्वछता के साथ ही सभ्यता भी हमारी पहचान हो तभी हम सम्पूर्ण रूप से नम्बर वन होंगे ।स्वच्छ हो और सभ्य हो के साथ ही विकास संभव है अन्यथा नही । मेरा प्रदेश नम्बर वन है और रहेगा ।
#डॉ. दीपा मनीष व्यास
परिचय : सहायक प्राध्यापक डॉ. दीपा मनीष व्यास लेखन में भी सक्रिय हैं। आपने एमए के बाद पीएचडी (हिन्दी साहित्य)भी की है। जन्म इंदौर में ही हुआ है। इन्दौर(म.प्र.)के प्रसिद्ध दैनिक समाचार-पत्र में कहानियाँ और कविता प्रकाशित हुई हैं।आप साहित्य संस्था में अध्यक्ष पद पर हैं एवं कई सामाजिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।
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