अनुशासन 

0 0
Read Time3 Minute, 14 Second
saheblal saral
अनुशासन के साथ में जीवन, जीना बहुत जरूरी है।
समय साधकर चले निरन्तर, होगी आशा पूरी है।।
कदम कदम से ताल मिला लो, राह बना लो अपनी तुम।
धीरे चलना थक मत जाना, वरना हस्ती होगी गुम।।
लगे रहो का भाव तुम्हारा, निश्चित फलकारी होगा।
डटे रहोगे हटो नहीं तो, पल पल गुणकारी होगा।।
कदम में दम है नापेगा वो, चाहे लम्बी दूरी है।
अनुशासन के साथ में जीवन, जीना बहुत जरूरी है।।
हार रहे हो बार बार तो, बार बार कोशिश करना।
हार के आगे जीत मिलेगी, मित्र सूत्र ये तुम रटना।।
जंग जीतना ही जीवन में, जन्म सिद्ध अधिकार हो।
डरा डरा कर हार को बोलो, हार तुझे धिक्कार हो।।
हार नहीं स्वीकार करो जग, बोले जो मगरूरी है।
अनुशासन के साथ में जीवन जीना बहुत जरूरी है।।
सतत साधना के बल साधक, सिर ऊँचा हो जायेगा।
कठिन परिश्रम के कारण ही, मंजिल अपनी पायेगा।।
अपने बाप का क्या कम होगा, गर थोड़ी मेहनत कर लो।
मेहनत के बल खाली वाली, तुम झोली अपनी भर लो।।
कठिन काम को करने को खुद को देना मंजूरी है।
अनुशासन के साथ में जीवन जीना बहुत जरूरी है।।
पक्की धुन के रहना बिल्कुल, चाहे कोई कुछ बोले।
सोच लिया तो होकर होगा, मतवाले का तन डोले।।
जलती भट्टी में तपकर पकती रोटी तंदूरी है।
अनुशासन के साथ में जीवन जीना बहुत जरूरी है।।
जीवन जीवन है ना भूलो, भूल भुलैया में तुम तो।
वन वन में भटकोगे वरना, ताज रखा सर पर ही हो।
छिपी हुई अंदर में तेरे, मृग तेरी कस्तूरी है।
अनुशासन के साथ में जीवन जीना बहुत जरूरी है।।
अटल रखो विश्वास खुदी पर, साधक संयम मत तोड़ो।
बनके रहना ‘सरल’ सहज तुम, अंधी दौड़ में मत दौड़ो।।
संयम के पालन को बन्दे, मत बोलो मजबूरी है।
अनुशासन के साथ में जीवन जीना बहुत जरूरी है।।
#साहेबलाल ‘सरल’
परिचय-
 नाम- साहेबलाल दशरिये ‘सरल’
 शिक्षा- M.A. (English, History.), बी. एड.
सम्प्रति- व्याख्याता
पूरा पता- बालाघाट (मध्यप्रदेश)
प्रकाशित कृति-
(i) अभिव्यक्ति भावों की काव्य संकलन 2011
(ii) ये बेटियां 2012
(iii) रानी अवंतीबाई की बलिदानगाथा 2013
9. प्रकाशन- अनेकों पत्र पत्रिकाओं में अनेकों रचनाओं का प्रकाशन।
10. उपलब्धि- अनेकों साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान एवं देश के अनेकों मंचो पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में कवितापाठ।
 

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

दीवार

Sat Jul 7 , 2018
भावनाओं के रथ पर सवार। बहुत कुछ कहती हैं दीवार। उगलकर शोला और आग, कर देती है आंगन के दो भाग। मन के कोने पर करारा प्रहार। भावनाओं के रथ पर सवार। बहुत कुछ कहती है दीवार। बिखरते बंधन टूटती आस्था, दिखता नहीं कोई भी रास्ता। बजते नहीं अब दिलों […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।