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कभी कभी मुस्कुरा भी दिया करो यारों,
चेहरे पर उदासियां अच्छी नहीं लगती ।
माना गम बहुत है इन राहों में मगर,
जिंदगी में मायूसियां अच्छी नहीं लगती।
उदासियां थामती है निराशा का दामन,
और मायूसियां घोर अंधेरे फैलाती है ।
मगर मेरे यार, चेहरे की मुस्कुराहट तो,
अमावस की रात में भी सूरज उगाती है।
क्या खाक जिएंगे ज़िंदगी खुशियों से वो,
जिनके चेहरे उदासियों से ढल गए ।
‘स्पर्श’ होंगे उनको ही मुकाम जिंदगी के,
जो हंसते-हंसते कांटो पर भी चल गए ।
#सुशील दुगड़ “स्पर्श”अंकलेश्वर(लुहारिया)
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