खिजा के फूल से झर रहे हैं पल। जिन्दगी की डाल से, खुद से हैं सवाल से…? रास्ते भटक गए हैं… मोड़ पर अटक गए हैं। शाम-सी तमाम है, जिन्दगी की चाल भी। रुके-रुके कदम कहीं, झुका-सा आसमान भी। अंधकार छा गया…, रजनी बन आ गया…। जुगनू चमक उठे, तारे […]
काव्यभाषा
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