तिमिराँचल से रवि किरण धीमे-धीमे सप्त स्वर के, आरोह-अवरोह संग व्योम-मंच पर गतिशील हो नृतन करने। पीतांबरी,गुलाबी,पीला गुलाल सारे गगनाँचल, में फैल आकाश का मुख रंग गया। पंछियों ने स्वर घुंघरु छनका दिए, दसों दिशाएँ गुलाबी आभा-सी दमकने लगी। जागृति देख पिय आकाश की प्रिया धरती भी, अलसाई-सी अंगड़ाई ले […]
काव्यभाषा
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