सनन सनन करती चलती पुरवाई है। मौसम की मुझसे ई कैसी रुसवाई है।। तेज हवा के झोंके आकर पूरव से पश्चिम बल खाकर बादल को उड़ा ले जाते हैं तेज तपिश क्यूँ तड़पाते हैं घिर -घिर कर यह चहुँओर चहुँओर छाई घटा घनघोर दुमक दुम बादल करते बारिश को मनवा […]
काव्यभाषा
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