ज़ुबां पे कैसे आता मेरे इश्क का फसाना, उसे वक्त ही नहीं था जिसे चाहा था सुनाना, ============================ मेरे साथ घूमते हैं पूरी रात चाँद-तारे, इनका भी नहीं है क्या मेरी तरह ठिकाना, ============================ आज़मा ले शौक से तू गैरों की भी वफाएँ, कहीं भी नहीं मिलेगा मुझ सा तुम्हें […]
काव्यभाषा
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