बस मुझे ही अपनी गलियों में यूँ ही न बुलाया कर कभी चाँद बनके तू भी मेरी छत पे आ जाया कर मैं जाता ही नहीं किसी भी मंदिर और मस्जिद में बस तू ही मुझे मेरे ईश्वर,खुदा सा नज़र आया कर मैं क्यों जाऊँ किसी भी काबा या काशी […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
जिस सहर पे यकीं था वो ख़ुशगवार न हुयी देखो ये कैसी अदा है नसीब की समझा था जिसे बेकार, वो बेकार न हुयी मांगी थी जब तड़प रूह बेक़रार न हुयी कहूँ अब क्या किसी से देखकर माल-ओ-ज़र भी मिरि चाहतें तलबगार न हुयीं सोचा था जिन्हे अपना वो साँसें मददगार न हुयीं है अजीब अशआर क़ुदरत की भूल से छोड़ा था जिसे हमने वो निगाहें शिकबागार न हुयीं #डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 42
