जीवन मे हर पल छला-छला सा लगता है। आईने में अपना चेहरा धुन्दला सा लगता है।। बारिश से बचने के लिए सहारा लिया था छत का। ध्यान दिया तो वो भी खुला खुला सा दिखता है।। अत्यधिक उम्मीदों को बनते बिगड़ते देखा है। कुछ छलावों से खुद को दिन में […]
काव्यभाषा
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गिरिधर गोपालदास की छत्रछाया में पले-बढ़े थे, अल्पायु में ही दीखलाया चतुर्दिशा का हर एक बिंदु। हिंदी, हिंदू ,हिंदुस्तान का उद्घोष किया, कहलाये आधुनिक हिंदी के पितामह भारतेंदु।। हिंदी भाषा की नींव रखी, रीतिकालीन गलियारों से। मातृभाषा की सेवा में लगे, तन-मन-धन हृदय विकारों से।। हिन्द के हिंदी कुलदीपक थे, […]
