मधुकर बासंती हुए, भरमाए निज पंथ। सगुण निर्गुणी बहस में, लौटे प्रीत सुपंथ। लौटे प्रीत सुपंथ, हरित परवेज चमकते। गोपी विरहा संत, भ्रमर दिन रैन खटकते। कहे लाल कविराय,सजे फागुन यों मनहर। कली गोपियों बीच, बने उपदेशी मधुकर। . भँवरा कलियों से करे, निर्गुण पंथी बात। कली गोपियों सी सुने, […]
