मंजिल रूठ गई पैरों से, श्रम से दूर सफलता भागी आँखों में आ बैठा मरुथल, पथ को खाने लगीं दिशाएँ कहो मित्र!रोएं या गाएं। आंगन में उग रही उदासी, चौराहों पर खड़े लुटेरे छीन रही हिंसा पगलाई, सारे सपने तेरे-मेरे सम्बन्धों का उपवन उजड़ा, फल स्वार्थ के आक-जवासे छोटा हुआ […]
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उदगम् स्थल में,अति सूक्ष्म- सी, कल कल मस्ती में,शैशव-सी जिंदगी नदी-सी। मुश्किलों से भिड़ जाती बाधाओं, पर्वतों से टकराती- सी, जिंदगी नदी-सी। जहाँ से जाती बालू सिमटाती सब प्रेम भरे रिश्तों नातों-सी, जिंदगी नदी-सी। मैदानों में शांत चित्त-सी, प्रपातों में उग्र व्यग्र-सी.. जिंदगी नदी-सी। सभ्यताओं के संग बहती-सी, लेकर सब […]