कितनी माताओं की, सूनी हो गई गोद। तरसे होंगे रोटी के लिए, असंख्य अबोध। इस बँटवारे का, नगर कितना लम्बा है ? अनगिनत स्त्रियों का, संसार सूना हो गया। मुस्कुराती बगिया का, चमन वीरान हो गया। कपोलों पर सूखा, सागर कितना गहरा है ? रक्षाबंधन पर कितनी राखियां, सिसकी,तड़पी होंगी। […]
