बाबुल मै तेरे बागों की लाडली मैंना थी फुदक-फुदक कर इधर-उधर डोला करती थी दाना-दुनका जो भी दे देता था उसे मै चुपचाप चुग लिया करती थी। पर तुझसे उठाया न गया मेरा नन्हा सा बोझ और तूने पाली मुक्ति मुझे सैयादों को सौप यहां मुझे पिंजरें मै बंद […]
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लोगों का क्या है समझते कम हैं बिना जरुरत समझाते ज्यादा हैं समय पर काम आने से कतराते हैं सलाह मुफ़्त है बिन मांगे दे जाते हैं सुनते रहो ऊल जलूल तो ठीक कुछ कहो तो बुरा मान जाते हैं दूसरे के कष्ट में आता है मजा भला चाहने का ढोंग कर जाते हैं कोशिश करता हैं कोई सुलझाने की बेवजह आकर चीजें उलझाते हैं लोगों का क्या है….. #डॉ रूपेश जैन ‘राहत’ Post Views: 28
