निकलूं मैं जब तेरी गलियों से राहों में प्रियतम तुम मिल जाओ। लौटा दो तुम अब मेरी नींद मुझे वापस मेरा मुझको दे दिल जाओ।। भटक रही शाम बिन तेरे भटके – भटके से दिन हैंं। क्या जानो तुम हाल मेरा हम जीते कैसे तुम बिन हैं।। पस्त अवारा अब […]
हिन्दी विरोध वस्तुत: भाषा और साहित्य के कारण से नहीं, परन्तु आर्थिक-सामाजिक-राजनैतिक कारणों से होता है। पूर्वांचल में, असम में और बंगाल मारवाड़ी व्यापारियों का विरोध हिन्दी-विरोध का रूप लेता है। उड़ीसा में संबलपुरी (हिन्दी-मिश्रित उपभाषा) अपना स्वतंत्र अस्तित्व चाहती है। दक्षिण में उत्तर भारत, संस्कृत, आर्य, ब्राह्मण और हिन्दी का विरोध एक साथ किया जा सकता […]