अन्तर्जातीय विवाहों को समय पर रोक दिया होता, संस्कारों का हनन हमने यूं मूक सहा नहीं होता। तो स्वतंत्रता के नाम पर उच्छश्रंखलता नहीं बढ़ी होती, भव्यता के प्रदर्शन में अश्लीलता नहीं पनपी होती। वक्त रहते सम्भलना हमको यदि आ जाता, ‘लव जिहाद’ का दंश भारत में नहीं पनप पाता। […]
काव्यभाषा
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