मटका भरा-भरा जो रहता टूटा- बिखरा पड़ा हुआ है। घर जो मेरा शोर मचाता विवश आज वह खड़ा हुआ है। गाँव के बच्चे शोर मचाते हठ पर अपने अश्रु बहाते। बूढ़ी दादी खाट पर बैठे हम बच्चों को गीत सुनाती। हरा- भरा जो गाँव मेरा था टूटा बिखरा आज है। […]
काव्यभाषा
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