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खामोश ख्वाहिशें देतीं दस्तक
मेरे मन की चौखट पर
हौले हौले चुप कर देती
उनको बहला फुसलाकर
नन्ही नन्हीं ख्वाहिशें जब
बच्चों जैसा हठ करतीं
मुश्किल होता समझाना
रह रहकर वो दम भरतीं
मैं कहती अभी वक्त नहीं है
कभी और तुम आ जाना
अभी अधूरे काम कई हैं
उनको भी है निबटाना
वक्त मुस्कुरा कर ये कहता
तुमने अब तक ना जाना
कहाँ रुका हूँ , कब ठहरा हूँ
मेरा नहीं है कहीं ठिकाना
मत बहलाओ ख्वाहिशों को
सुन लो उनकी भी तुम बात
जी लो जी भरके तुम जीवन
पा लो खुशियों की सौगात
# नविता जौहरी
भोपाल ( म. प्र.)
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