मित्रो आज में एक ऐसे विषय परअपनी लेखनी करने जा रहा हूँ  ! जिसकी चर्चा हर समाज, जाती, धर्मआदि में बहुत ही होती है ! वो हैदहेज़ का लेना देना ? लड़की वालाहै तो उसे चिंता है की मुझे अच्छारिश्ता अपनी बेटी के लिए चाहिए , तो कितना दहेज़ देना पड़ेगा ? जिनके लड़के है उन्हें अच्छी बहु केसाथ अच्छा संपन्न परिवार औरअच्छा दहेज़ मिले इसकी चिंतारहती है ? यदि कुल मिलाकर देखेतो दोनों परिवारों में इस दहेज़ कीचिंता है ?  दोनों परिवारों के दहेज़के विषय पर भिन्न भिन्न विचार भी है/ हमारा समाज कितना भी शिक्षितऔर संपन्न ही क्यों न हो परन्तु दहेज़के विषय पर सभी की राय एकजैसी ही है / मेरे एक परिचित है उनके दो बेटे हैजो कि अच्छे पढ़े लिखे है ! काफीसंपन्न और धार्मिक प्रवृति के होने केसाथ समाज में उनका अच्छा नाम है/ उनके छोटे बेटे की शादी का एकरिश्ता आया ! तो वो अपने बेटे केलिए बहू देखने के सुबह से तैयार होगए ! उन्होंने अपनी पत्नी कोआवाज़ लगाई, कविता जी सभीलोग तैयार हो गए तो चले ? चूकिकविता जी एक पारंपरिक घरेलूमहिला है। ज्यादा पढाई तो नहीं करपाईं, मगर हाँ उनकी बौद्धिक क्षमतासे परिवार वाले भली भांति परिचितथे। अनिल जी उनके तो क्या कहने, ज्ञान का भंडार थे। उच्च शिक्षितऔर उच्च विचारधाराओं के धनी ।इन विषमताओं के बावजूद दोनों नेएक आदर्श पति पत्नी की छविबनाई थी। कविता जी भीसामाजिक मापदंडों पर खरी उतरनेवाली एक आदर्श महिला थी। सब गाड़ी में बैठ कर चल दिए औरकविता जी अपने अतीत में खोगयी। अक्सर ये होता है कि यात्राकरते वक्त अतीत जरूर सामनेआता है ! कविता जी को भी यादआया जब वो ब्याह कर इस घर मेंआईं थी ,सास को बिलकुल नहींभांती थी । उनकी सास थोड़ी सख्तमिज़ाज थी !  बात बात पर तानेउलाहने देना उनकी आदत थी।उनकी नजरो में बहू मतलब घर कीनौकरानी,  जिसे मुँह खोलने कीआज़ादी ना थी । घर में सारीपाबंदियां थी ! जो आमतौर परबहुओं पर लगाई जाती थी, या यूँकहूँ कि उस समय बहुओं पर वो हरअत्याचार जो जायज था ! , हालांकिअनिल जी अपनी माँ को समझानेका यथासंभव प्रयास करते थे !  मगर सब व्यर्थ था ! वो किसी कीसुनने वाली महिला नहीं थी । उल्टाअनिल जी बीवी के पक्षधर है तू येकहती थी । कविता जी के लिएअनिल जी का साथ ही संजीवनी था! जिसके कारण ही वो बखूबीअपना हर पारिवारिक दायित्वनिभाती चली गई । वो इसी उधेड़बुनमें थीं और गाड़ी लड़की वालों के घरपहुँच गई। स्वागत सत्कार चायनाश्ते का दौर चला,और बेटी को भीदेखा ! जो सभी को पसंद आ गई ! बातचीत शुरू हुई और बात लेन देनकी आई पुन: कविता जी फिरअतीत में उलझ गई । उनके बड़े बेटेआशुतोष की शादी याद आ गई । अनिल जी कविता जी के हर फैसलेका सम्मान करते थे मगर कभी-कभी वो सारे फैसले स्वयं कर लेतेथे और एक आदर्श पत्नी की तरहवो मौन स्वीकृति दे देती थीं । उसकीशादी में अनिल जी ने लड़की वालोंसे साफ कह दिया हमें दहेज नहींचाहिए ! बस हमारे बारातियों काअच्छा स्वागत-सत्कार हो ,भेंटस्वरूप मिले सारे पैसे और ऊपर सेकुछ अपनी तरफ से मिलाकर बहूको गहने बनवाकर दे दीजिये । मगरकहते हैं की अच्छों के साथ हीज्यादातर बुरा होता है ? बहु आते हीबेटे के साथ चली गई अलग रहने ।फिर भी मन ना भरा तो दहेज कामुकदमा कर दिया ! ससुराल वालोंपर कुछ साल तक बड़ा बेटा कोर्टकचहरी के चक्करों में परेशान रहा,और फिर वही बीवी को लेकर अलगरहने लगा ! इस तरह की घटनाउनके साथ पहले घट चुकी थी ! इसकारण कुछ ज्यादा ही सावधानीवरत रही थी  ! सहसा अनिल जी की आवाज़ नेउन्हें चौंका दिया और वो अतीत सेवर्तमान में लौट आये जी । अनिलजी फिर वही पुराना जुमला कह रहेथे !  हमें दहेज नहीं चाहिए वगैरहवगैरह। मगर इस बार कविता जी नेहस्तक्षेप किया और सहसा बोलपड़ी ‘ हमें कुछ नहीं चाहिए अपितुशादी का एफिडेबिट चाहिए’। सबआश्चर्य से कविता जी को देखने लगेअनिल जी कुछ कहते इससे पहलेकविता बोली,,, ‘आप उसमें साफशब्दों में लिखवाए कि :- 1-हमने आपसे कोई दहेज नहींलिया । हमें अपने बेटे पर पूराभरोसा है वो यथासंभव अपना खर्चवहन कर सकता है। 2- आपकी बेटी को पूरी आज़ादीरहेगी जैसी आपने दी है, मगर बड़ोंका अपमान करने की आज़ादी हमउसे नहीं देंगे। 3- उसे पारिवारिक दायित्व कानिर्वहन पुरी इमानदारी से करनाहोगा ! हम सब उसकी यथासंभव मददकरते रहेंगे। 4- उसे फैसले लेने, अपना मत रखनेऔर घर की हर बात जानने का पूरा हक होगा ! अजनबी सा व्यवहारनही किया जाएगा । उसका हर फैसला मान्य होगा मगर वोफैसले परिवार हित में हो !  उसमेंसभी की सहमति अनिवार्य है। 5- मेरे बेटे का ये दायित्व है कि वोउसका पूरी तरीके से ख्याल रखे । जितना सम्मान अपने माँ-बाप कोदेता है, उतना ही उसके माँ बाप को देगा !  यही बात आपकी बेटी परभी लागू होगी  । यदि आप और आपकी बेटी इनशर्तो को मान्य करती है तो रिश्तापक्का ! और हाँ एक बात याद रखे ! हम बेटीनहीं बहू ही लेकर जाएँगे, क्यों कीहम सब जानते हैं कि बहु को प्यारदेने में हमेशा कमियाँ हुई है । हमयथासंभव उन कमियों को दूर करनेका प्रयास करेंगे। हमें कोई जल्दीनहीं आप सोच समझ कर निर्णय ले। हमें दहेज में ये एफिडेबिट हीचाहिए।’  इतना कहकर कविता जीने हाथ जोड़कर जाने की आज्ञामाँगी । दोनों बेटे आश्चर्य से अपनीमाँ को देख रहे थे ! अनिल जी अपनेकिताबी ज्ञान और अपनी पत्नी केजिंदगी के तजुर्बों के ज्ञान की तुलनाकर रहे थे ! जिसमें धर्मपत्नी कापलड़ा ही भारी पड़ रहा था । साथियो यदि हमारा समाज वास्तवमें इस क्रुति को अपने दिल सेसमाज से निकलना चाहता है तो हमेंआने वाले समय में ये सब करनापड़ेगा ! क्योकि वैसे तो आज कलबेटियां ज्यादा पढ़ लिख रही है औरजिसके कारण लड़को को भीरिजेक्ट कर देती है / परन्तु वर्तमानसमय को देखते हुए ! शादी_का_एफिडेबिट लेना दो पक्षके लिए उचित कदम है /  जिसकेकारण बिना बजह के परिवार औरसमाज बदनामी से बच सकती है / साथी दोनों पति पत्नी के सम्बन्ध केसाथ परिवार वालो में भी अच्छेरिश्ते कायम रहेंगे / #संजय जैन परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी […]

लोगो से मिलोगे, तभी उनकी भावनाओ को समझोगे / जब भावनाओ को समझोगे, तभी एक दूसरे के दोस्त बनेंगे / जब दोस्त बनेंगे तो, एक दूसरे को समझेंगे / जब समझ जायेंगे तो, फिर निरंतर मिलते रहेंगे / जब निरंतर मिलते रहेंगे, तो ही तो रिश्ते बनेंगे / और जब […]

कभी कभी हमारे और आपके जीवन में कुछ इस तरह का घटित हो जाता है जिसे  हम और आप पूरी जिंदगी नहीं भूल पाते है / ठीक इसी तरह की घटना मेरे जीवन में घटी, जिसे में आज तक नहीं भूल पाया हूँ / सावन और चातुर्मास का महीना अभी […]

सवाल का जवाब सवाल में ही मिला मुझे …….! वो शख्स मेरा ख़्याल था, ख़्याल में ही मिला मुझे !! फिर भी न जाने ये दिल, क्यों यहाँ वहां पर भटकता है ! जबकि मुझे पता है, मेरे ख्यालो का राजा, मुझे ख्यालो में ही मिलता है !! गमे ख्यालो […]

 दोस्तों हम और हमारे पूर्वज जो की ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते थे न ही ज्यादा डिग्रियां उन लोगो के पास होती थी / परन्तु फिर भी वो लोग आज के विध्दमानो से बहुत ज्यादा ज्ञानी हुआ करते थे और उन लोगो में  व्यावहारिक, वहारिक के साथ ही सामान्य ज्ञान […]

उस पिक्षि कमंडल वाले के, चरणो में खो जाऊ / मेरा जी करता है, विद्यागुरु के नित दर्शन पाऊ/ देखी है दुनिया सारी, ये मतलब दीवानी / बिन मतलब रिश्ता ने जोड़े, ये कहते नई कहानी / किस किस को में अपनाउ, किस किस को ठुकराऊ / मेरा जी करता […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।