ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को, भाड़े के कमरे के कोने–कोने में.. जहाँ कमरे के बाहर खोले गए, चप्पलों के संख्या के हिसाब से.. बढ़ जाता है किराया हर माह, ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को.. चावल,दाल और आटे के खाली कनस्तरों में, बेटी के दूध की बोतल में.. जिसमें […]

आज सुबह सड़क किनारे, बारिश के पानी से लबालब गंदी बस्ती में कुछ नंग-धड़ंग मासूम से दिखते बच्चों को कूड़े के ढेर में पड़ी जूठन के लिए मुहल्ले के भूखे खूंखार कुत्तों से लोहा लेते देखा। कुछ बुजुर्गों को उघाड़े बदन, खून से रिसते घावों के साथ टूटी चारपाई पर लोट-पोट होते देखा, स्वस्थ भारत में योगा करने की असफल कोशिश कर रहे थे शायद। इस सबके बीच नशामुक्त भारत की सशक्त नारियों को उनके बेरोजगार पतियों के हाथों लहूलुहान होने का एक दृश्य अकस्मात ही चौंधियाईं आंखों के सामने से तेजी से निकल गया। वहीं इलाज के अभाव में, मृत पत्नी को कंधे पर ले जाते उस युवक ने अकस्मात ही मेरे अंतस को झकझोर कर रख दिया। `सबका साथ सबका विकास` के नारे की हकीकत कुछ इस तरह मेरे सामने से गुजर जाएगी, ऐसी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी तेज कदमों के साथ इस अनछुए भारत को वहीं छोड़कर नज़रें झुकाकर मैं वापस इक्कीसवीं सदी के अपने सपनों के भारत की ओर लौट पड़ा।       #मनोज कुमार यादव Post Views: 522

  नही हैं छाया पेड़ों की, जो है उसका कर रहा हूँ नाश नाम मेरा विकास। औद्योगिकीकरण की चादर ओढ़े, घूमूं छोटे–बड़े शहरों में हरियाली है दुश्मन मेरी लगाता हूँ कारखाना,कर जंगल साफ़, संग प्रकृति खेल रहा हूँ ख़्वाब है मेरा अंधविकास, नाम मेरा विकास। कारखानों से निकले रासायनिक प्रदार्थ, देता हूँ नदियों में डाल जल प्रदूषण में है योगदान, लक्ष्य है महाविकास चाहे हो मानवता का ह्रास, प्रकृति को नियंत्रित करूँगा है मेरा ये थोथा अभिमान, नाम मेरा विकास। वृक्षों से ऊँची है इमारतें अपार, घर–घर में वाहन हैं दो–चार वायु विषैली जीवन नर्क समान मशीनें करेगी काम-धाम आलस्य का होगा अधिकार, बन जाएगा नाकारा इन्सान.. नाम मेरा विकास। है विनाशक यंत्र,अणु–परमाणु बम, संहारक सम्पूर्ण मानवता का अविष्कार किया कई देशों ने, वर्चस्व स्थापित,शक्ति–दर्शाने को प्रयोग हुआ मिट जाओगे नाम मेरा विकास।।                                   […]

आज मंदिर गया और रब से मिला, एक दीवानगी है,मैं जब से मिला…। कुछ भिखारी थे सीढ़ी पे बैठे हुए, और कुछ थे सड़क पर भी लेटे हुए जितने भी थे भिखारी,मैं सबसे मिला, एक दीवानगी है,मैं जब से मिला….॥ भूखों को रोटियाँ बाँटकर ये लगा, सो रहा था मैं […]

तासीर हर शब्द की गहरी और अलग है, कहीं जमीं,कहीं फलक है कुछ ख्वाब हैं यहाँ, कुछ सुरखाब हैं। पेड़ भी हैं पत्ते भी, कलियाँ हैं कुछ फूलों के इंतज़ार में, मौसम-ए-बहार में क्या-क्या है यहां, कितना बताऊँ कभी घड़ी भर मिले तो बतलाऊँ। ऊपर से जो दिखे, जिंदगी वैसी […]

आते-जाते तो नित्य रहे, सबने जाना स्कूल गए। हाजरी बनी पर मन न बना, बच्चों को सिखाना भूल गए। अपनी गरिमा न जान सके, खुद कैसे राष्ट्र निर्माता हैं। आजीवन हो जो आभारी, उनके ही भाग्य विधाता हैं। औरों की निष्ठा देख रहे, खुद भी उनके अनुकूल गए। हाजरी बनी […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।