तेरे अहसास के आगोश में, सोना भी खूबसूरत सपने जैसा लगता है। रातें भी उनींदी-सी लगती है कि, कोसों दूर भाग गई नींद जैसे… मेरा सुकून मुझसे दगा कर गया , इसकी वाजिब वजह हो तुम… हँस पड़ता हूँ कभी-कभी तुझे याद करके यूँ ही… और कभी खो जाता हूँ, हँसते-हँसते तुझमें। आँखें भी मुझसे धोखा कर गई,तेरा ही अक्स दिखाती है हर किसी में… लगता है तेरा वजूद रमा हुआ है मेरे अस्तित्व में, कि पहचान हो जैसे… एक-दूसरे की हम-तुम। बनी रहे ये पहचान सदियों तलक कि तुम भी मेरे अहसास में खो जाओ, कुछ ऐसा करें आओ, कि हम तुमसे पहचाने जाएँ… `मनु` तुम हमसे जाने  जाओ, तुम हमसे जाने जाओ…ll                                                 […]

आज सुबह सड़क किनारे, बारिश के पानी से लबालब गंदी बस्ती में कुछ नंग-धड़ंग मासूम से दिखते बच्चों को कूड़े के ढेर में पड़ी जूठन के लिए मुहल्ले के भूखे खूंखार कुत्तों से लोहा लेते देखा। कुछ बुजुर्गों को उघाड़े बदन, खून से रिसते घावों के साथ टूटी चारपाई पर लोट-पोट होते देखा, स्वस्थ भारत में योगा करने की असफल कोशिश कर रहे थे शायद। इस सबके बीच नशामुक्त भारत की सशक्त नारियों को उनके बेरोजगार पतियों के हाथों लहूलुहान होने का एक दृश्य अकस्मात ही चौंधियाईं आंखों के सामने से तेजी से निकल गया। वहीं इलाज के अभाव में, मृत पत्नी को कंधे पर ले जाते उस युवक ने अकस्मात ही मेरे अंतस को झकझोर कर रख दिया। `सबका साथ सबका विकास` के नारे की हकीकत कुछ इस तरह मेरे सामने से गुजर जाएगी, ऐसी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी तेज कदमों के साथ इस अनछुए भारत को वहीं छोड़कर नज़रें झुकाकर मैं वापस इक्कीसवीं सदी के अपने सपनों के भारत की ओर लौट पड़ा।       #मनोज कुमार यादव Post Views: 488

तेरी यादों की ले चादर, कि सोया रहूँ मैं रात भर चाहता हूँ मैं बस इतना., कि न नींद आए,न कोई ख्वाब मेरे हाथों में रहे बस तेरा हाथ भर,                        कि,सोया रहूँ मैं रात भरl लड़ जाउँगा मैं फिर, […]

मेघों ने अमृत घट, छलकाया अम्बर से, बूंदों  ने चूम लिए, धरती के गाल। शरमाया ताल। परदेसी मौसम ने , अम्बर के आँगन में, टांग दिए मेघों के , श्यामल परिधान। वातायन वातायन, गंध घुली सौंधी-सी, दक्षिणी हवाओं ने, छेड़ी है तान। किरणों ने बदन छुआ, रिमझिम फुहारों का , […]

  हल चलाता जा हे हलधर! इस तपती रेती में, जोते जा तू उम्मीदों को अपनी,गिरवी खेती में। न आया बादल आषढ़िया,गहराया न सावन… श्रम बिन्दु झरझर बरसा,तू बंजर रेती में।।   पूछत प्रिया तेरी तुझसे कैसी होगी अबकी खेती? ब्याह देगें क्या अबके मुहूर्त में अपनी बड़की बेटी! बहुत […]

  आज मैने चाँद को जी भर कर देखा… ना उसे जाने की जल्दी थी,न मुझे कोई काम था… सुकून भरी रैना में मैं और मेरा नितान्त एकान्त था हवा भी दिन भर की तपन के बाद शीतल हो चली थी भागदौड़ भरे दिन और जलती दोपहरी की आखिरकार शाम […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।