सुनो प्रहलाद,कैसे लगाऊं तुम्हें रंग अबीर, घिरे हो तुम असंख्य होलिकाओं से.. क्या जला सकोगे इन्हें अपनी बुआ की तरह, राजनीति में षड्यंत्र को होली को। शिक्षा को सरे बाजार बेचती होली को, गाँवों को उजाड़ शमशान बनाती होली को। शहरों को कांक्रीट जंगल बनाती होली को, पेड़ों पर आरी […]