सतरहवें साल की रजनी इक उम्र के पड़ाव पर, रातभर ठिठकी खड़ी रही जवानी और बचपन की, दहलीज पर अड़ी रही। सोचकर बस इक दिवस शेष शर्म से जड़ी रही, सिहरती लरजती अपने ही स्वेद में (ओस)जकड़ी रही। भोर की गतिविधियों से बेखबर निरंतर पिघलती रही, दिवस का स्वागत भी […]