दिन ढलने को था, आसमान से श्वेत कबुतर अपने आशियानों की तरफ लौटने ही वाले थे, कहवा ठण्डा होने जा रहा था, पत्थरबाजों के हौसले परवान पर थे, अलगाववाद और चरमपंथ अपनी उधेड़बुन में बूमरो गुनगुना रहा था, चश्म-ए-शाही का मीठा पानी भी कुछ कम होकर एक शान्त स्वर […]