आज अपराधी यहाँ बढ़ रहे, क्रोध-कपट की चाहत है।.. नरसंहार और प्रहार से ये धरती माता आहत है। मस्तक में हो चंद्र शीतलता, इसके लिए तुम कुछ तो बोलो.. अभिमान के वंशज बढ़ गए, भोले अब त्रिनेत्र खोलो। भावों में बढ़ रही मलिनता, रह न पाती कहीं पवित्रता.. ऊंच-नीच और […]
काव्यभाषा
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