कला जो कानून हो गया। मानवता का ख़ून हो गया। वहशी खेल दरिंदों का वो। सपना चकनाचूर हो गया। बिछड़ गए अपनों से अपने। धूल हुए आँखें के सपने। फिर भी अड़े रहे परवाने। आग भरी राखों के तप ने। मिट्टी का रंग लाल मिलेगा। गोरों का जंजाल मिलेगा। जीवन […]
काव्यभाषा
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