बच्चों मानव अंगों में छिपे हैं, ज्यामितीय आकृति के राज। कान लगे जैसै हो अर्धवृत्त, बिंदु जैसी बनी प्यारी आंख॥ त्रिभुज जैसी बनी है नाक, वक्र रेखा-सी लगे पलक। वृत्त जैसा लगे हमारा चेहरा, शंकु जैसे लगे सिर के बाल॥ रेखाखंड जैसे लगे पैर, समानांतर चतुर्भुज हाथ। आयत-सी बनी काया, […]
gopal
कितनी कलियों को जगाया मैंने, कितनी आत्माएँ परश कीं चुपके; प्रकाश कितने प्राण छितराए, वायु ने कितने प्राण मिलवाए। कितने नैपथ्य निहारे मैंने, गुनगुनाए हिये लखे कितने; निखारी बादलों छटा कितनी, घुमाए फिराए यान कितने। रहा जीवन प्रत्येक परतों पर, छिपा चिपका समाया अवनी उर; नियंत्रित नियंता के हाथों में, […]