बचपन में, गाँव के, घर-आँगन में, खाट पर बैठकर, कहती थी माँ, मेरा सूरज जैसा बेटा। बहिन को कहती थी माँ, मेरी चाँदनी जैसी बिटिया। माँ तो अब, इस संसार में नहीं, लेकिन मैंने सम्भालकर रखी है वो खटिया, अन्तरंग प्रेम क्षणों की साक्षी। […]
काव्यभाषा
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