गहरी पीर भरी हो मन में, अधरों पर फिर भी मुस्कान। भाव-कर्मपथ को सम्यक कर, छेड़ो सस्वर तुम मधु गान॥ श्वेत-श्याम रंग जीवन के, कभी कुलिश कभी लिए सुगन्ध। सुख-दुख गति-ठहराव मध्य है, जीवन का स्वर्णिम अनुबन्ध ॥ जब तक साँस,आस है तब तक, चले कर्मपथ को पहचान। सब कुछ […]
काव्यभाषा
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