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तुम चाय की पत्ती,
मैं तुम्हारा दूध,
बिन तुम्हारे अस्तित्व विहीन
मैं हुआ बेसुध।
तुम समाहित होती मुझमें,
निखर उठता रूप,
अपना लिया तुमने मुझको,
धन्य हुआ ये कुरूप,
तुम बिन ले उबाल
हो जाता मैं क्रुद्ध,
मिलन होता तुमसे
हो शांत,
तुम पर हो जाता मुग्ध
मचल उठता मन,
सुन-सुन मैं दूध सफेद
प्रिये,
तुमसे मिलन हुआ जैसे ही
मिट गया रंग भेद,
तुमसे मेरा मिलन होने पर
चाय का जन्म होता,
दुखी हो जाता वह जो
तुमको खोता,
तुमको मुझको कोई भी
कर न सकेगा अलग,
मैं और तुम जीवित रहेंगे
जब तक रहेगा ये जग,
सब बदलेंगे
किन्तु बदले न हमारा रूप,
तुम चाय की पत्ती,
मैं तुम्हारा दूध।
#सुनील चौरे ‘उपमन्यु’
परिचय : कक्षा 8 वीं से ही लेखन कर रहे सुनील चौरे साहित्यिक जगत में ‘उपमन्यु’ नाम से पहचान रखते हैं। इस अनवरत यात्रा में ‘मेरी परछाईयां सच की’ काव्य संग्रह हिन्दी में अलीगढ़ से और व्यंग्य संग्रह ‘गधा जब बोल उठा’ जयपुर से,बाल कहानी संग्रह ‘राख का दारोगा’ जयपुर से तथा
बाल कविता संग्रह भी जयपुर से ही प्रकाशित हुआ है। एक कविता संग्रह हिन्दी में ही प्रकाशन की तैयारी में है।
लोकभाषा निमाड़ी में ‘बेताल का प्रश्न’ व्यंग्य संग्रह आ चुका है तो,निमाड़ी काव्य काव्य संग्रह स्थानीय स्तर पर प्रकाशित है। आप खंडवा में रहते हैं। आडियो कैसेट,विभिन्न टी.वी. चैनल पर आपके कार्यक्रम प्रसारित होते रहते हैं। साथ ही अखिल भारतीय मंचों पर भी काव्य पाठ के अनुभवी हैं। परिचर्चा भी आयोजित कराते रहे हैं तो अभिनय में नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से साक्षरता अभियान हेतु कार्य किया है। आप वैवाहिक जीवन के बाद अपने लेखन के मुकाम की वजह अपनी पत्नी को ही मानते हैं। जीवन संगिनी को ब्रेस्ट केन्सर से खो चुके श्री चौरे को साहित्य-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में वे ही अग्रणी करती थी।
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Mon Feb 19 , 2018
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