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मध्यप्रदेश में फ़िल्म प्रदर्शित नहीं हुई,इसलिए बड़ी मशक्कत से फ़िल्म तक पहुंचा,तो खैर निराशा नहीं हुई है।निर्देशक-लेखक संजय भंसाली,प्रकाश कापड़िया की इस फिल्म में कलाकार- रणवीरसिंह,दीपिका,शाहिद कपूर , अदिति राव,रज़ा मुराद,अनुप्रिया गोयनका और जिम सरभ हैं।
इसकी अवधि १६३ मिनट तथा छायाकार सुदीप चटर्जी है। इस आलेख को केवल समीक्षा न मानकर फ़िल्म और विवाद का तुलनात्मक अध्ययन माना जाए। पहले शुरू करते हैं विवाद से-तो
फ़िल्म का निर्माण जुलाई २०१६ में शुरू हुआ था। अक्टूम्बर २०१७ में वायाकॉम १८ ने भंसाली के साथ निर्माण की जवाबदारी ली। जनवरी २०१७ में जयपुर में जयगढ़ दुर्ग में शूटिंग के दौरान राजपूत करणी सेना ने उपद्रव मचाया, तब शूटिंग स्थगित करके महाराष्ट्र ले जानी पड़ी। अब सोचने वाली बात यह कि फ़िल्म की पटकथा शूट के पहले ही करणी सेना को कैसे पता चल गई और आरोप यह लगाया गया कि,भंसाली ने ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की है। मैं खुद फ़िल्म निर्माण और प्रबंधन से जुड़ा हूँ, तो बता दूँ कि,पटकथा किसी बाहर वाले तक नहीं पहुचती है,यह बड़ी संजीदगी एवं गोपनीयता से रखी जाती है। फिर करणी सेना ने विरोध में दृश्यों तथा तथ्यों से छेड़छाड़ की बात कैसे उजागर की ? ? ?
खैर,शूटिंग बदलकर महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुई,जहां १५ मार्च को पेट्रोल बम से अज्ञात लोगों ने हमला किया। हमलावरों ने सेट,वेशभूषा का फिर नुकसान किया,जिससे अब फ़िल्म का बजट १६० करोड़ से बढ़कर २०० करोड़ पर पहुंच गया।
अब बात केवल करणी सेना तक नहीं रही थी,पूरे देश के एक बड़े वर्ग विशेष तक पहुंच गई थी। सभी ने सोशल मीडिया पर विरोध और आंदोलन में शरीक कर लिया। यहाँ तक कि देश की वर्तमान सरकार को भी बयान देना पड़ा
कि,भंसाली शुरू से सफाई देते रहे कि फ़िल्म में ऐसा कुछ नहीं है,जैसा विरोध में कहा जा रहा है।
फिर संजय लीला भंसाली ने फ़िल्म मुकम्मल की और देश के बड़े पत्रकारों को दिखाई। रजत शर्मा,अर्बन गोस्वामी, डॉ.वेद प्रकाश वैदिक जी के देखने के बाद अंत में यह फ़िल्म सेंसर बोर्ड को बड़ी उदघोषणा के साथ पेश की गई कि यह मलिक मुहम्मद जायसी के काव्य ग्रंथ पर आधारित फिल्म है।
इधर मामला प्रदर्शन के पूर्व उच्चतम न्यायालय भी गया,लेकिन करणी सेना को खाली हाथ आना पड़ा। निर्देशक भंसाली क्लीन चिट लेकर बाहर आए और राज्य सरकारों को निर्देश दिए गए कि,फ़िल्म प्रदर्शन की व्यवस्था की जाए।अब २५ जनवरी को अक्षय की ‘पेडमेन’ भी प्रदर्शन को तैयार थी,लेकिन अक्षय हमेशा लफड़ों से दूर रहते हैं,तो यहां भी उन्होंने खुद को दूर कर ‘पेडमेन’ का प्रदर्शन आगे बढ़ा दिया। इतना ही बोलना चाहूँगा कि,यदि भंसाली की फिल्म एक भी सिनेमाघर में लगी है तो भंसाली और देश के उच्चतम न्यायालय की बड़ी जीत है,वहीं एक भी सिनेमाघर में नहीं लगी तो करणी सेना की जीत मानी जाएगी।
खैर,अब फ़िल्म पर चर्चा करते हैं,जो
सर्वविदित है। फ़िल्म की शुरुआत ही खिलजी राजवंश से होती है। क्रूर, मगरूर,वहशी अलाउद्दीन(रणवीर)को दिखाया गया है,साथ ही मेवाड़ के राजा रावल रतनसिंह (शाहिद) वीर योद्धा पद्मावती(दीपिका) को दिखाया गया कि कैसे पद्मावती से गलती से शिकार पर आए रतन सिंह कैसे घायल हो जाते हैं। पद्मावती उनकी सेवा करके स्वस्थ करती है और रतनसिंह पद्मावती पर मोहित हो कर शादी का प्रस्ताव दे देते हैं। इसे पद्मावती सहर्ष स्वीकार कर लेती है, जबकि राजा रतनसिंह शादीशुदा है। पहली पत्नी(अनुप्रिया गोयनका) राजमहल में ही है,और सभी पद्मावती को स्वीकार कर लेते हैं। राजा द्वारा पद्मावती की राज पुरोहित राघव चेतन से मुलाकात करवाई जाती है,जहां रानी पद्मावती सौंदर्य के साथ बुद्धिमत्ता का परिचय देती है। राघव चेतन रानी की सुंदरता पर मोहित हो जाते हैं,जब राजा और रानी शयन कक्ष में होते हैं तो राज पुरोहित वहां छिपकर देखते हैं। इस पर राजा कटार से वार करते हैं और राज पुरोहित को देश निकाला दे दिया जाता है। इस अपमान का बदला लेने के लिए वह खिलजी से मिलकर उसको पद्मावती की सुंदरता ओर किस्मत की चाबी बताकर मेवाड़ पर आक्रमण के लिए तैयार कर लेता है। खिलजी अपने वहशियाना अंदाज में चित्तोड़ पर आक्रमण के लिए किले के बाहर पहुंच जाता है,फिर शुरू होता है रानी पद्मावती की राजनीतिक कूटनीति और बौद्धिकता का परिचय। खिलजी धोखे से राजा रतनसिंह को बन्दी बना लेते हैं,तथा दिल्ली ले आते हैं। बदले में मांग होती है पद्मावती की। ऐसे में रानी ६ शर्तों पर दिल्ली पहुँचती है और खिलजी की पत्नी (अदिति हैदरी) उन्हें वहां से सुरंग के रास्ते फरार करा देती है,यह कहते हुए कि- मैं तुम दोनों को नहीं,अपने पति को गुनाह से बचा रही हूँ।
तब खिलजी पगलाकर चित्तोड़ पर आक्रमण कर देता है। इसका अंत क्या होता है,इसके लिए आपको फ़िल्म देखना बनता है।
फ़िल्म के संवाद लाजवाब लिखे गए हैं,
जो भंसाली ओर प्रकाश कापड़िया ने लिखे हैं। फ़िल्म सेट,वेशभूषा, सिनेमेटोग्राफी,पटकथा लाजवाब है तो
संजय भंसाली का निर्देशन भी कमाल का है। ‘राजपूताना तलवार में जितनी ताकत और शौर्य है,उतना ही शौर्य राजपूताना कंगन में भी है,ये फ़िल्म के इस संवाद को चरितार्थ करती है।
एक राजपूतानी अपनी आन-बान-शान और शील बचाने के लिए खुद के प्राण देना मंज़ूर करती है,लेकिन मर्यादा टूटना मंज़ूर नहीं किया।
कलाकारों की बात करें तो भंसाली का चरित्र चयन निसन्देह शानदार होता है, लेकिन शाहिद में गच्चा खा गए हैं।
रणवीर ने जैसा घिनौना खिलजी पेश किया उसे देखते ही घिन्न आती है,यही उसकी सार्थकता है। वहशी,दरिंदा,हवस से भरा हुआ रणवीर की ज़िंदगी का सबसे बड़ा किरदार निकाल लिया गया है। दीपिका भी शानदार लगी है। जौहर वाले दृश्य में आंखें नम और सीना चौड़ा हो जाता है। जिस वीरता के साथ दीपिका ने यह दृश्य दिया,उससे रोंगटे खड़े हो जाते हैं,और सिनेमाघर के दर्शक खड़े होकर ताली बजाने लगते हैं। यहां भंसाली के काम को सलाम करने को दिल चाहता है।
एक अच्छा दृश्य और है-सेनापति गोरा बादल जब वीर गति को प्राप्त होते हैं तो आंखें नम-सी हो जाती है। यह फ़िल्म हर भारतीय को देखना चाहिए और फैसला करना चाहिए कि,विरोध किस बात का था। मैंने फ़िल्म को देखकर राजपूताना आन-बान-शान में चार चांद लगे पाए, विरोध जैसा कुछ दिखा ही नहीं।
#इदरीस खत्री
परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| इनका परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।
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