
दिमाग का एक प्रतिशत भी लगाकर सोचें तो पता चलेगा कि गणतंत्रता के नाम पर हमें गुमराह किया जा रहा है।गणतंत्र दिवस तो मनाते हैं पर हम ये भूल जाते हैं कि देश की करोड़ों जनसंख्या अब भी ‘गणतंत्र’ और ‘ स्वतंत्र’ जैसे शब्द के अर्थों से अनभिज्ञ है। दुख होता है जब गणतंत्र दिवस पर लम्बे-चौड़े भाषण देनेवाले नेताओं को चाय परोसने दस-बारह साल का बच्चा आता है…दुख होता है जब स्वतंत्रता और गणतंत्रता दिवस का जश्न मनाकर शान से राष्ट्रीय मिष्ठान जलेबी खाते हैं उस दुकान पर भी १२-१३ साल का कोई छोटू काम कर रहा होता है,बर्तन साफ कर रहा होता है…दुख होता है जब सोशल मीडिया पर देशभक्ति पर खूब सारा ज्ञान बघारने वाले खुद के घर में गरीब मासूम बच्चे-बच्चियों से काम करवाते हैं…दुख तो तब भी होता है जब देश का भविष्य कचरे में अपना कल ढूंढ रहा होता है…क्या ऐसे में हम गर्व से कह सकते हैं कि हमारे देश में ‘गणतंत्र’ है…?
गरीबी-लाचारी के तवे पर अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने वाले लुटेरे कब गरीबों की रोटी तक छीन जाते हैं ! इस गणतंत्र में गण ‘का’ तंत्र (जनता ‘का’ तरीका/शासन) वास्तव में जनता ‘का’ शोषण बन चुका है। एक ओर कुछ लोग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर देशद्रोह की बात करते हैं तो दूसरी तरफ कूड़ा बीनने वाला बच्चा शिक्षा के अधिकार से वंचित…एक तरफ हजारों करोड़ रुपए के घोटाले हो रहे हैं तो दूसरी तरफ महँगाई का दंश झेलती जनता…ऐसे में इस गणतंत्र का क्या अर्थ ?
ये गणतंत्र दिवस इसलिए मनाया जाता है क्योंकि आज ही के दिन पूरे देश में संविधान लागू हुआ था। कहा गया था कि ये संविधान सबके लिए बराबर है,चाहे गरीब हो या अमीर,नेता हो या जनता,लेकिन वर्तमान समय को देखकर ऐसा नहीं लगता है। यहाँ सारे नियम-कानून नोटों के सामने सिर झुकाकर अपनी इज्ज़त लुटने का इंतज़ार करते हैं। हद तो तब हो जाती है जब राजनीतिक इशारों पर ‘न्याय’ के रक्षक ही इसके भक्षक बन बैठते हैं ! न्यायिक व्यवस्था देशद्रोह की बात करने वालों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ सुरक्षा देती है और राष्ट्रवादी नारे लगाने वालों को सांप्रदायिक करार देकर गिरफ्तार करती है। ऐसे में न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा घटता जा रहा है,जो एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए खतरे की घंटी है।
लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया भी अब तक के सबसे खराब हालात में है। हमारे देश की मीडिया व्यस्त है अभिनेता-अभिनेत्रियों के प्यार-धोखे के ताजे किस्से देने में…मीडिया व्यस्त है मरे हुए इंसान के डीएनए में दलित या मुस्लिम शब्द ढूंढने में…मीडिया व्यस्त है देशद्रोहियों को देश का अभिनेता बनाने में…मीडिया व्यस्त है आतंकवादियों को मानवता के नाम पर पनाह देने की कवायद करने में…उसे कहाँ फुर्सत जो देश के लोग,जो देश से ही बेदखल हो रहे हैं उनका दर्द सुनने की…उसे कहाँ फुर्सत कि वो बुनियादी सुविधाओं से वंचित लोगों का दर्द दिखाने की…उसे कहाँ फुर्सत जो झूठे वादे करनेवाले नेताओं को आईना दिखा सके…आज पत्रकारिता की स्थिति चंद पैसों की वजह से बदतर हो चुकी है।
सच्चे अर्थ में हमारा देश ‘गणतंत्र’ तब कहलाएगा, जब देश का कोई भी व्यक्ति शिक्षा-भोजन-रोजगार से वंचित न हो…जब हर किसी के लिए संविधान बराबर हो…जब जाति-धर्म के नाम पर विशेष सुविधाओं का खेल समाप्त हो…जब हम सबकी पहचान बस एक भारतीय के रूप में हो…मुझे इंतजार है उस दिन का,जब हम खुद को सचमुच में एक स्वतंत्र लोकतंत्रात्मक राष्ट्र के नागरिक के रूप में महसूस कर सकें और गर्व से मना सकें स्वंतत्र और गणतंत्र होने का जश्न…। जय हिंद…जय भारत…।
#शुभम कुमार जायसवाल
परिचय: शुभम कुमार जायसवाल की जन्मतिथि-२ जून १९९९ और जन्मस्थान-अजमाबाद(भागलपुर, बिहार)है। आप फिलहाल राजनीति शास्त्र से स्नातक में अध्ययनरत हैं। उपलब्धि यही है कि,छोटी कक्षा से ही छोटी-छोटी कविताएं लिखना,विभिन्न समाचार पत्रों में कई कविताएँ प्रकाशित और दसवीं की परीक्षा में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दो दैनिक पत्रों द्वारा सम्मानित किए गए हैं। रुचि से लिखने वाले शुभम कुमार को सामाजिक क्षेत्र में कार्य के लिए पटना में विधायक द्वारा सम्मानित किया गया है। इनकी कविताएँ कुछ समाचार-पत्र में प्रकाशित हुई हैं। लेखन का उद्देश्य-समाज का विकास,सबको जागरुक करना एवं आत्मिक शांति है।