फिर से न जला देना

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kuldeep dahiya
ना फिर से आग लगा देना,
इस प्यारे से चमन में…।

बड़ी शिद्दत से पनपे हैं
अंकुर अभी सौहार्द के,
कलियाँ भी खिली-खिली हैं
ले प्रेम की बांहों का साथ,
भरे हैं घाव बैर-भाव के
जो हो चुके थे बहुत गहरे,
खून की नदियाँ ना बहा देना
इस चहकते मधुबन में…।

उन्नति के सोपान चढ़ जो
बड़े सजऱ बन चुके थे,
मन में संकल्प धर के
लंबी डगर वो चढ़ चुके थे,
महकती बहारों से
नूर-ए-नज़र बन चुके थे,
फिर से मुर्दे ना जला देना
उस जल हुए कफ़न में…।

नफ़रत की चिंगारियाँ
सदा आग ही उगलती हैं,
दहशतगर्द माहौल में
प्रेम की कलियाँ ही जलती हैं,
सहमे-सहमे बदहवास दिल
ख़ार की नस्लें ही पनपती हैं,
फिर से काँटे ना चुभो देना
इस कोमल-नरम बदन में…।

मज़हब ही तो अलग हैं
पर खून सबका लाल है,
एक ही कोख़ से जन्मे
सब भारत माँ के लाल हैं,
फिर क्यों बुनते रहते सब
नफरतों के मकड़जाल हैं,
हिज्र के शगूफे ना उड़ा देना
तुम महकती पवन में…।

ना फिर से आग लगा देना,
इस प्यारे से चमन में॥

#कुलदीप दहिया ‘मरजाणा दीप’

परिचय : कुलदीप दहिया का उपनाम ‘मरजाणा दीप’ है। 
आप हरियाणा राज्य के शिक्षा विभाग में प्राथमिक अध्यापक के पद पर २००४ से कार्यरत हैं। श्री दहिया का जन्म स्थान-कैथल (हरियाणा )है। शैक्षणिक योग्यता-एम. ए.( हिंदी )सहित बी.ए.,बी.एड.,जे.बी.टी.,आफिस सेक्रेट्रीशिप एंड स्टेनोग्राफी(हिंदी) में डिप्लोमा है। आपका स्थाई निवास हरियाणा के ज़िला भिवानी स्थित माजरा कॉलोनी में है। वर्तमान में श्री दहिया हिसार में हैं। आपकी नजर में लेखन का उद्देश्य-‘मेरे अल्फ़ाज मेरी पहचान होंगे,जहाँ लिखेंगे वहीं अमिट निशान होंगें,कुछ ऐसा क़िरदार निभा जाएंगे,हर जुबाँ पे मरजाणा तेरे नाम होंगे’ है। साहित्यिक उपलब्धि के तौर पर बचपन से ही लेखन में रुचि और हरियाणा शिक्षा विभाग की पत्रिका में निरंतर कविताएं प्रकाशित होना है। साथ ही भारत और अमेरिका से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। २ साझा काव्य संग्रह(कस्तूरी कंचन और पुष्पगंधा) में ग़ज़लें ओर कविताएं छपने के साथ ही पंजाबी में भी ग़ज़लें प्रकाशित हुई हैं। वेब पत्रिकाओं में भी आपकी रचनाओं को स्थान मिला है। मेवात (हरियाणा) द्वारा २०१७ में आपको छात्रों का शैक्षणिक स्तर ऊंचा उठाने के उपलक्ष्य में ‘स्टार टीचर’ अवार्ड दिया गया है। कुछ साहित्यिक संस्थाओं में भी जुड़कर आप सक्रिय हैं।

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