ओझल बचपन

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masharib
अब तो अम्बर पर भी गुफ़्तुगू छिड़ गई,
नीचे बस्तियों में अब वो बात नहीं॥
सुनकर ये दुखड़ा तितलियाँ भी कह रही,
जाने क्यूँ मोहल्ले की गलियां सूनी है पड़ी॥
साइकल के पुराने पहियों की दास्ताँ,
न जाने क्यूँ सुनसान पड़े है सब मैदां।
वो कंचे,वो लंगड़ी,उस मिटटी से मिला दे,
ऐ मोबाईल नाम की चीज़,मेरे बच्चों के खेल लौटा दे॥
चोंटी हिलाती वो लड़कियां दिखती क्यूँ नहीं,
हर शाम अब पतंगों से सजती क्यूँ नहीं।
आज वो बच्चे अस्पतालों में क्यों मिलते हैं,
नए-नए मर्ज़ अब उन पर क्यों खुलते हैं॥
वो हवाएं वो खुशबू कह रही,
चलो बसाएँ बस्ती अपनी फिर वहीं।
चलो पकड़ने जुगनूं फिर चलें,
वही कहानी,फिर से वही सिलसिले॥
#मशारिब अंसारी
परिचय : मशारिब अंसारी की उम्र १९ वर्ष है। आप मध्यप्रदेश के बालाघाट जिला स्थित तहसील तिरोड़ी में रहते हैं।अभी बी.एस-सी. में अध्ययनरत होकर अलग-अलग विषयों पर लिखने में रुचि है।

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