
और फिर कभी-कभी तकरार
के बीच समय
ठण्ड की गुनगुनी धूप-सा,
यादों की सुराही में सिमट गयाl
अब तो समझदारी के ताने-बाने बुनते हुए,
कभी उलझते हैं
कभी सुलझ जाते हैं,
खुद में ही
एक दूजे के जज्बातों को
एकदम से समझ जाने का,
ये जादुई सिलसिला तो
अनवरत रहेगा।
नदियों की भाँति,
हम दो बहनों की कल-कल में
जब से तुम्हारा नाद शामिल हुआ
तब ये रिश्ता संगम बन
और भी पावन हो गया।
माता-पिता और बड़ों के
अनुभवों के चाक पर,
तुम्हारी संवेदनाओं को
जो परिपक्वता मिली,
सम्भाल रखना उन्हें
बिखरने से
और बढ़ चलना,
लक्ष्य के उत्तुंग शिखर
छूने को।
मेरे अनुज,
जन्मोत्सव का ये शुभ अवसर
चिरकाल तक तुम्हें
आशीष देता रहे॥
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।