Read Time1 Minute, 14 Second
चाँद-सा चेहरा तेरा,
दिल खिला-खिला तेरा
मोर की मोरनी तू,
फूल की कली तू।
रात अंधेरा नहीं था,
दिन उजाला नहीं था
सूरज डूबा नहीं था,
चाँद उगा नहीं था।
पेड़-पौधे खिलखिलाते रहे,
कलियां मुस्कुराती रही
चिड़िया चहचहाती रही,
भँवरे मुस्कुराते रहे।
नेता नेतागिरी करते रहे,
अभिनेता अभिनय करते रहे
खिलाड़ी खेल खेलते रहे,
गीतकार गीत गाते रहे।
कैसी ये ज़िन्दगी,
कैसा ये जमाना॥
#रुपेश कुमार
परिचय : चैनपुर ज़िला सीवान (बिहार) निवासी रुपेश कुमार भौतिकी में स्नाकोतर हैं। आप डिप्लोमा सहित एडीसीए में प्रतियोगी छात्र एव युवा लेखक के तौर पर सक्रिय हैं। १९९१ में जन्मे रुपेश कुमार पढ़ाई के साथ सहित्य और विज्ञान सम्बन्धी पत्र-पत्रिकाओं में लेखन करते हैं। कुछ संस्थाओं द्वारा आपको सम्मानित भी किया गया है।
Post Views:
612
Fri Nov 3 , 2017
ये पीड़ा वो पीड़ा, जाने कितनी पीड़ाओं में व्यक्तित्व दबा है। देह पीड़ा में रोगों की छाया से, शरीर कुंद हुआ। मन पीड़ा में ह्रदयाघात हुआ, अंर्तमन अंत:पीड़ा में अवचेतन शून्य हुआ, समाजिक पीड़ा में मानंसिक कुठा पैदा हुई, सबके-सब पीड़ा में हैं। और ये मिलती कहाँ से खुद मुझसे, […]