तुम्हारी सिसकियां मुझको…

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indrapal
नहीं बिखरा कभी भी वक्त की इन आँधियों से मैं,
मगर क्यूं तोड़ देती हैं तुम्हारी सिसकियाँ मुझको।
जु़दाई के समय मैंने कहा था-याद मत करना,
ख़बर फिर याद की क्यूं दे रही हैं हिचकियाँ मुझको।
दिखाई मैं दिया तुमको वहाँ तक एकटक देखा,
बताती हैं तुम्हारे साथ की कुछ लड़कियाँ मुझको।
कभी सावन,कभी सर्दी,कभी सूरज सताता है,
तुम्हारे बिन सताते हैं भ्रमर सब तितलियाँ मुझको।
तुम्हें छूकर अपावन होंठ पावन हो गए मेरे,
सबब अब पूछती हैं हिज़्र का ये उँगलियाँ मुझको।
ज़रूरत आज है जिसकी वही कल ज़िंदगी होगा,
सिखाती हैं बिना पानी तड़पती मछलियाँ मुझको।
ग़रजते बादलों में हाथ मेरा कौन थामेगा,
कहीं ये मार न डालें कड़कती बिजलियाँ  मुझको॥

                                                            #इन्द्रपाल सिंह

परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।

matruadmin

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