नजर

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vijaykant
 ‘नजर’ तुम कृपा की हमसे ना फेरो,
हे कृष्ण माधव  माेहन  मुरारी।
हे दीन बंधु अमित करूणा सिन्धु,
गूंजे मन में हरदम बंशी तुम्हारी॥
चाहत से राहत दो मन को हे माधव,
मिटे मलिन  विषयों की खुमारी।
चंचल चपल मन को तुम ही भाओ,
कर सकूं अनन्य भक्ति गिरधारी॥
मुख में मधुर नाम हो तेरा निरंतर,
हृदय में हरिजी हरदम विराजो।
नयनों की राह से हे जग के स्वामी,
बस पल दो पल में न तुम भागो॥
नीलाम्बर से लेकर धूसर धरा तक,
जड़-जंगम जीव-वस्तु आदि सारे।
तेरी रजा से ही हैं सब सलामत,
सबमें चमत्कृत हैं पौरूष तुम्हारे॥
बावन सौ वर्ष पूर्व तुम इस धरा पर,
गोविन्द गोपाल बने हे केशव कन्हाई।
गोकुल गलियों में वृन्दा की कलियों में,
लीला अगम तुम अगोचर दिखाई॥
फिर भी कृपा से रह गए वंचित वे,
चरण-शरण जिसने तेरी न पाई।
शाक विदूर के खाए सानन्द तुमने,
दुष्ट सुयाेद्धन की वा मिष्ठान्न खाई॥
प्रेम के हो भूखे हे जग के मालिक,
सारथी बने अर्जुन के हे स्वामी।
कृपा द्रोपदी..गज..गुरू कुब्जा पाए,
हरे कष्ट भगतों के तुम अन्तर्यामी॥
तेरे रुप दर्शन के शिव जी अभिलाषी,
दौड़े आए मथुरा में तजकर काशी।
आनन्दमग्न भोलेनाथ हुए दर्शन कर,
नकुल त्रिनयन हैं जो सुखराशी॥
ऋषियों ने,संतों ने,भगतों ने गाया,
तेरी कृपा बिना न मिटे तेरी माया।
हे विश्वपालक जगत नियंता,
द्वार तिहारे है अधम भी यह आया॥
                                               #विजयकान्त द्विवेदी 
परिचय : विजयकान्त द्विवेदी की जन्मतिथि ३१ मई १९५५ और जन्मस्थली बापू की कर्मभूमि चम्पारण (बिहार) है। मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार के विजयकान्त जी की प्रारंभिक शिक्षा रामनगर(पश्चिम चम्पारण) में हुई है। तत्पश्चात स्नातक (बीए)बिहार विश्वविद्यालय से और हिन्दी साहित्य में एमए राजस्थान विवि से सेवा के दौरान ही किया। भारतीय वायुसेना से (एसएनसीओ) सेवानिवृत्ति के बाद नई  मुम्बई में आपका स्थाई निवास है। किशोरावस्था से ही कविता रचना में अभिरुचि रही है। चम्पारण में तथा महाविद्यालयीन पत्रिका सहित अन्य पत्रिका में तब से ही रचनाएं प्रकाशित होती रही हैं। काव्य संग्रह  ‘नए-पुराने राग’ दिल्ली से १९८४ में प्रकाशित हुआ है। राष्ट्रीयता और भारतीय संस्कृति के प्रति विशेष लगाव और संप्रति से स्वतंत्र लेखन है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।