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बाबू दिलीप सिंह,रामू को पैसा देते वक्त हिदायत देते हुए कहते हैं -‘रामू यह पैसा मैं तुम्हें ब्याज पर दे रहा हूँ। हमें हर माह की हर १० तारीख को १० हजार मूलधन का १००९ रुपए सूद प्रति माह की दर से मिल ही जाना चाहिए,हमें दुबारा न कहना पड़े।’ रामू सिर झुकाते हुए -‘हाँ’ कहकर घर चल दिया।
रामू उस पैसे से अपनी छोटी बेटी अंशिका की पथरी का आपरेशन कराने का पैसा अस्पताल में जमा कर बेटी को घर लाया।
अब वह हर १० तारीख से पहले मर- मजदूरी कर किसी प्रकार बच्चों का पेट- पर्दा काटकर बाबू साहब के घर पर एक हजार रुपए सूद का पैसा पहुँचा दिया करता था। बाबू साहब रामू पर बहुत खुश थे।
एक दिन बाबू साहब के सबसे छोटे बेटे दीपकसिंह की तबियत बहुत खराब हो गई। बाबू साहब अपने बेटे को आनन-फानन में जीप में बैठाकर गंगोत्री हॉस्पिटल( गोरखपुर) ले पहुँचे,जहाँ डॉ. महेशसिंह से हाथ जोड़कर अनुनय-विनय के साथ कहने लगे -‘डॉक्टर साहब, यह मेरा सबसे छोटा बेटा है। अचानक इसकी तबियत बहुत खराब हो गई। इसे जल्दी से ठीक कर दीजिए।’
डॉ. साहब ने नाक से अपना सफेद चश्मा हटाते हुए कहा-‘देखिए,मैं अभी जाँच करके बताता हूँ,थोड़ा धैर्य रखिए, घबराइए नहीं।’
डॉ.साहब ने दीपकसिंह का पूरा चेक-अप करके कहा-‘दिलीप जी,आपके बेटे के दिल में छेद है। पूरे पाँच लाख रुपए का खर्च लगेगा। भगवान के आशीर्वाद से यह बालक ठीक हो जाएगा,लेकिन भर्ती अभी ही करना पड़ेगा। बोलिए,आप क्या कहते हैं?” डॉ.साहब अपना फैसला सुना चुके थे,अब बारी थी बाबू साहेब के फैसले की।
बाबू साहब बहुत सोच-विचार कर बोले कि-‘डॉक्टर साहब,आप जल्दी भर्ती करिए,बेटे से बड़ा पैसा थोड़े ही है।’
बेटे को भर्ती कराने के बाद बाबू साहब पैसे के इन्तजाम के लिए कुर्सी पर लेटकर मन में सोचने लगे कि-‘काश मैं रामू जैसे गरीब और सज्जन लोगों को चक्रवृद्धि ब्याज पर पैसा न दिया होता और लाखों रुपए गाँवों में न बाँटा होता तो आज हम अपने लड़के की दवा कहाँ से कराते ? बैठकर सोचने से भी अब काम नहीं चलेगा?! चलो अभी फोन लगाते हैं रामू के घर पर कि,हमारा मूलधन सहित सभी रुपए कहीं से लाकर पहुँचा जाए वह।’
डायरी से फोन नम्बर निकालकर बाबू साहब रामू कॊ फोन लगाते हैं तो रामू फोन उठाकर कहता है-‘बाबू साहब प्रणाम।’
‘प्रणाम।’ बाबू साहब ने कहा।
‘रामू, हमारे बेटे की तबियत बहुत ही खराब है,इसलिए चाहे जहाँ से सूद सहित मेरा मूलधन हॉस्पिटल में पहुँचा देना। फिर हमें दोबारा फोन न करना पड़े।’
बाबू साहब ने फोन पर गुर्राते हुए कहा।
‘मगर बाबू साहब,हमारे पास तो इस समय खाने को फूटी कौड़ी भी….।’
‘मगर-वगर कुछ नहीं,हमें पैसा चाहिए तो चाहिए ही वह भी सूद सहित। अगर हमारे बेटे को कुछ हुआ न,तो तेरी खैर नहीं है,फोन रख।’ रामू की बात काटते हुए बाबू साहब ने उसे अपनी अन्तिम चेतावनी देते हुए फोन काट दिया था।
रामू अब कहाँ से पैसे लाए,इसी सोच में वह निढाल हो खटिया पर पड़ा था।
‘पापा-पापा, चलिए खाना खा लीजिए न, माँ आपको कब से बुला रही है। आप हैं कि सुनते ही नहीं।’ बेटी अंशिका तुतलाते हुए बोली।
‘हाँ हाँ,बेटा! ठ ठ ठीक है। अपनी मम्मी को कहो कि,खाना यहीं पर पहुँचा दे।’ रामू ने दबी आवाज से अपनी बेटी से कहा।
बेटी अंशिका ने माँ से यह बात कही तो उसकी पत्नी रीता खाना लेकर आई और बोली-‘लीजिए,खाना खा लीजिए।’
‘देखो आज हमें तनिक भी खाना खाने का मन नहीं कर रहा है।’
‘अभी तो आपको बहुत भूख लगी थी और हमसे कहा कि जल्दी से रुखा-सूखा बनाओ। अब क्या हुआ?’
बहुत कुरेदने पर रामू बोला-‘ये अमीर लोगों को पाप का फल ऐसे ही मिलता है लेकिन फिर भी इन्हें दिखाई क्यों नहीं देता है? जितना पाप ये करते हैं,भगवान इनकी सूद सहित भरपाई ऐसे ही करता है।’
‘आप क्या बड़बड़ा रहे हैं ? खुलकर बताइए न हमें।’
‘बाबू साहब के छोटे लड़के की तबियत बहुत ही खराब है। अस्पताल में भर्ती है।अब वह सूद सहित मूलधन का पैसा माँग रहें हैं। अब हम कहाँ से उनको दें?’
‘चलिए पहले खाना खाइए, जो दो मण्डी खेत बचे हैं,उसे भी रेहन पर रखकर दे देगें उन्हें हम।’
#रामभवन प्रसाद चौरसिया
परिचय : रामभवन प्रसाद चौरसिया का जन्म १९७७ का और जन्म स्थान ग्राम बरगदवा हरैया(जनपद-गोरखपुर) है। कार्यक्षेत्र सरकारी विद्यालय में सहायक अध्यापक का है। आप उत्तरप्रदेश राज्य के क्षेत्र निचलौल (जनपद महराजगंज) में रहते हैं। बीए,बीटीसी और सी.टेट.की शिक्षा ली है। विभिन्न समाचार पत्रों में कविता व पत्र लेखन करते रहे हैं तो वर्तमान में विभिन्न कवि समूहों तथा सोशल मीडिया में कविता-कहानी लिखना जारी है। अगर विधा समझें तो आप समसामयिक घटनाओं ,राष्ट्रवादी व धार्मिक विचारों पर ओजपूर्ण कविता तथा कहानी लेखन में सक्रिय हैं। समाज की स्थानीय पत्रिका में कई कविताएँ प्रकाशित हुई है। आपकी रचनाओं को गुणी-विद्वान कवियों-लेखकों द्वारा सराहा जाना ही अपने लिए बड़ा सम्मान मानते हैं।
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