मुखौटा

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pushpa sharma

आँखों पर आँखों का पहरा है,                                                                            आँखें ही चुरा रहा हूँ।                                                                                              पहन के चेहरे पर चेहरा,                                                                                        सबको ठगता जा रहा हूँ॥

परचूनी की बड़ी दुकान,
अच्छा धन्धा बढ़ती शान।                                                                    गेंहूँ,चावल,आटा-दालें, तेल-घी और सभी मसाले।                                                शुद्धता का बोर्ड लगा, सब नकली चला रहा हूँ॥

बीमारों का बड़ा भरोसा,
बड़ा दबदबा डाक्टर सा.का।
क्लीनिक अपना परीक्षणों का,
प्रमाण-पत्र है सर्जरी का।
भ्रूण परीक्षण,कन्या
गर्भपात से गुनाह कर रहा हूँ॥
पहन के….।

चला नसीब का खासा चक्कर,
पुलिस थाने में बन गया अफसर।
न्याय पाने को आते अक्सर,
लगते हैं लोगों के चक्कर।
अपने रुतबे को मैं अब
खासा भुना रहा हूँ॥
पहन के….।

जनता के वोटों के बल पर,
काबिज हो कुर्सी के ऊपर।
वादे तो पूरे नहीं होते,
मीठी-मीठी बातों से
उलझाता जा रहा हूँ॥
पहन के….।

भीड़ का विश्वास अनोखा,
धर्म की आड़ ले करता धोखा।
अपना ली पूरी मक्कारी,
शरम से मर गई दुनियादारी।
गाढ़ी कमाई चेलों की
अपने गढ़ में लगा रहा हूँ॥ पहन के….।

आखिर यह कहना पड़ता है,
ध्यान से जीना पड़ता है।
कब किससे धोखा खा जाएं,                                                                                यह सोच सजग होना पड़ता है।                                                                     मुखौटों की इस दुनिया में,                                                                              आगाह करता रहता हूँ॥

                                                                   #पुष्पा शर्मा 
परिचय: श्रीमती पुष्पा शर्मा की जन्म तिथि-२४ जुलाई १९४५ एवं जन्म स्थान-कुचामन सिटी (जिला-नागौर,राजस्थान) है। आपका वर्तमान निवास राजस्थान के शहर-अजमेर में है। शिक्षा-एम.ए. और बी.एड. है। कार्यक्षेत्र में आप राजस्थान के शिक्षा विभाग से हिन्दी विषय पढ़ाने वाली सेवानिवृत व्याख्याता हैं। फिलहाल सामाजिक क्षेत्र-अन्ध विद्यालय सहित बधिर विद्यालय आदि से जुड़कर कार्यरत हैं। दोहे,मुक्त पद और सामान्य गद्य आप लिखती हैं। आपकी लेखनशीलता का उद्देश्य-स्वान्तः सुखाय है।
 

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3 thoughts on “मुखौटा

  1. सादर नमन , आदरणीया
    आपकी कविता बढ़कर काफी बेहतर लगा ।धन्यवाद

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