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ज़िन्दगी है चार दिन की,जरा मुस्कुराइए,
ख्वाबों के दायरे से हकीकत में आइए।
ख्वाब होते हैं सुहाने,पलकें जब तक बन्द हैं,
खुल जो गईं हैं आंखें तो फिर जाग जाइए।
आपके आसपास जो हैं आपके अपने हैं सब,
घावों पर उनके भी तो कभी मरहम लगाइए।
खुशनसीबी तो आपकी चौखट पे है खड़ी,
स्वागत में उसके हाथ तो अपने बढ़ाइए।
दुख में भी न आपकी कड़वी जुबान हो,
मीठे ही बोल होंठों पर अपने सजाइए।
अपने सुखों को दूसरों में खोजते रहे,
हासिल अपने नसीब को भी आजमाइए।
आए थे हम अकेले,जाना भी है अकेला,
अपना कोई तो हमसफर,जहां में बनाइए॥
#श्रीमती किरण मोर
परिचय: श्रीमती किरण मोर मध्यप्रदेश के कटनी जिले में रहती हैं। आपकी जन्मतिथि-२५ नवम्बर १९६३ और जन्म स्थान कटनी है। शिक्षा-बी.ए. तथा कार्यक्षेत्र-गृहिणी के साथ ही लेखन कार्य है। सामाजिक क्षेत्र में आप महिला समिति में प्रचार मंत्री हैं। लेखन की विधा-गीत कविता,गजल एवं मुक्तक है। कुछ साझा प्रकाशन आपके नाम हैं। रचनात्मक सहयोग के लिए आप सम्मानित की गई हैं,तो शब्द शक्ति सम्मान भी प्राप्त किया है। आपकी लेखनी का उद्देश्य व्यवस्था और समाज में व्याप्त बुराइयों को लेखनी के माध्यम से दूर करने का प्रयास है। बेटी और नारी पर हो रहे अत्याचार का विरोध भी इसी ज़रिए करती हैं।
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Fri Sep 8 , 2017
आप मैं हम, तम दूर भगाएं दीप जलाएं। अज्ञान रूपी, अंधकार मिटाएं दीप जलाएं। न्याय के लिए, एक पग बढ़ाएं दीप जलाएं। हम भी खुश, रहे न वो भी दुखी कर जतन। झोपड़ी को भी, करें हम रोशन दीप जलाएं। करें रोशन, उस बस्ती को हम जहाँ है तम। ऐसा […]