नव क्षितिज 

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rajeshwari
भोर का खुला आसमान
नव प्रभात की बेला में,
दोनों हाथों को फैलाकर
उड़ जाऊँ पंछी बनकर,
और नाप लूँ नभ को
उम्मीदों के पंख लगाकर।
इस छोर से उस छोर तक
दूर क्षितिज में खो जाऊँ,
अपना अतीत बनकर
या में तितली बनकर,
मंडराऊँ फूल-फूल पर।
रंग-बिरंगे फूलों की खुशबू
लेकर नव जीवन का,
संचार करुं, या बहती हवा
में मादक गंध बन घुल जाऊँ,
रंग चुरा लूं  इंद्रधनुष के
छा जाऊँ नभ पर मैं,
नई प्रेरणा, नए विश्वास
से नया संसार बसाऊँ में।
नई ललक ले नव सपनों
का सृजन कर पाऊँ मैं,
है प्रभु धैर्य, शक्ति देना॥

                                                      #श्रीमती राजेश्वरी जोशी

परिचय : श्रीमती राजेश्वरी जोशी का निवास अजमेर (राजस्थान) में है। आप लेखन में मन के भावों को अधिक उकेरती हैं,और तनुश्री नाम से लिखती हैं।

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