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हरिगीतिका छंद….
अवधेश आत्म विराज के,
मन को सदा रख धाम-सा।
जड़ को सजीव बनाय के,
चलना सही पथ राम-सा।
उर में अलौकिक भाव हो,
जिससे बनूँ हनुमान-सा।
जग में निरंतर गूँजता,
प्रभु नाम ही प्रतिमान-सा॥
#श्रीमन्नारायण चारी ‘विराट’
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