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बांसुरी के सुर में बंधकर
गीत लिखना आ गया,
देखकर सूरत तुम्हारी
यूं लगा वो आ गया।
थी बही यमुना जहां पर
वो किनारा पा गया,
आस बांधी थी जहां पर
लो कन्हैया आ गया।
सांवली सूरत जो देखी
मन में आ गया खुमार,
यूं लगा सावन-सा जैसे
फिर से आ गई बहार।
मानते हैं मन से उसको
जानते हैं तन से हम,
बस बसा लो आँख में तुम
दूर होगा सारा तम।
कौन कहता है नहीं वो
इस धरा के धाम पर,
धड़कनों में वो बसा है
थोडा़ तू बस ध्यान कर।
कृष्ण कह तू या कन्हैया
या मदन गोपाल कह,
वह पलों में है छुपा
तू उसको न बरबाद कर।
तू कन्हैया पाने की
हठ एक मन में ठान ले,
जग से बस तू प्रेम कर ले
और नव-नित गान दे।
जीवन की इस भाग-दौड़ को
अब तो पूर्ण-विराम दे,
मुस्कुराना सीख कर तू
औरों को मुस्कान दे।
बांसुरी के सुर ……॥
#कार्तिकेय त्रिपाठी
परिचय : कार्तिकेय त्रिपाठी इंदौर(म.प्र.) में गांधीनगर में बसे हुए हैं।१९६५ में जन्मे कार्तिकेय जी कई वर्षों से पत्र-पत्रिकाओं में काव्य लेखन,खेल लेख,व्यंग्य सहित लघुकथा लिखते रहे हैं। रचनाओं के प्रकाशन सहित कविताओं का आकाशवाणी पर प्रसारण भी हुआ है। आपकी संप्रति शास.विद्यालय में शिक्षक पद पर है।
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Mon Aug 14 , 2017
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